गुरुवार, 22 जनवरी 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र २३]

संस्कार, विद्या, विनय,
सीखे जो संतान
कभी भटके दर--दर,
बनती सदा महान

-किसलय

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

सत्य वचन.

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

भाई विजय जी,
बहुत ही ख़ूबसूरत भावाव्यक्ति . कमाल का सत्यता से लबरेज दोहा है . भाई आपके दोहे पढ़कर मन प्रसन्न हो जाता है .
महेंद्र मिश्र
जबलपुर.

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

आदरणीय हेम जी एवं मिश्र जी
आपकी बहुमूल्य टिप्पणियों के लिए आभा.
-विजय