शुक्रवार, 16 जनवरी 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र २१]

उतने स्वप्न संजोइये,
जितने हों साकार
नाकामी को देखकर,
होता दिल बेजार
-किसलय

12 टिप्‍पणियां:

समय चक्र ने कहा…

विजय भाई
आपके दोहे पढ़कर बहुत अच्छा लगता है जो सभी को अच्छा संदेश देते है .
एक लाइन
उतने पैर फैलाइये जितनी चादर होय
उतने पैर सिकोडिये जितनी चादर होय
ये लाइन मैंने कही सुनी है कि आदमी को सपने सीमा के अन्दर ही संजोने चाहिए .
महेंद्र मिश्रा

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

महेंद्र जी
नमस्कार
आपने भी बहुत अच्छा लिखा है
बात सच है कि हमें अपने संसाधनों को देखते हुए ही विस्तार अथवा संकुचन करना चाहिए

उतने पैर फैलाइये जितनी चादर होय
उतने पैर सिकोडिये जितनी चादर होय


- विजय

BrijmohanShrivastava ने कहा…

किसलय जी / अच्छी बात कही है / ""नींद आख़िर उड़ गई बस करवटें बदला करो ,हम न कहते थे सुहाने ख्वाब कम देखा करो ""व्यक्ति पहले तो कल्पना में जीना शुरू कर देता है और बाद में परेशान होता है /बहुत ठीक कहा आपने

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

"व्यक्ति पहले तो कल्पना में जीना शुरू कर देता है और बाद में परेशान होता है". बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति प्रेषित की है बृजमोहन जी.
आभार
- विजय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

धन्यवाद जिमी जी.
-विजय

pritima vats ने कहा…

काव्य रूप में सच पढ़ने को मिला,अच्छा लगा।
धन्यवाद,

VIJAY NEMA "ANUJ" ने कहा…

HAPPY NEW YEAR TO U AND UR FAMILY APKE DOHE BAHUT ACHCHE LAGE

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

प्रतिमा वत्स जी
अभिवंदन
आप मेरे ब्लॉग पर पहुँचीं और दोहा पढा , अच्छा लगा

- विजय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

प्रिय मित्र "अनुज जी "
अभिवंदन
आपको यहाँ देख कर हार्दिक प्रसन्नता हुई .
आपने मेरे दोहों की प्रशंसा की, यही मेरी पूंजी है.
आपको भी सपरिवार नव वर्ष की शुभ कामनाएँ.
- विजय

Prem Farukhabadi ने कहा…

उतने स्वप्न संजोइये,
जितने हों साकार ।
नाकामी को देखकर,
होता दिल बेजार ॥
Kislay ji ,
bahut khoob likha. badhaai ho.

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

प्रेम जी
अभिवंदन
दोहे की प्रसंशा के लिए धन्यवाद
-विजय

बवाल ने कहा…

शानदार बात कही साहब आज के दोहे में।