tag:blogger.com,1999:blog-5581964230009177583.post7657823164981789212..comments2024-02-28T14:40:59.185+05:30Comments on हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर: दोहा श्रृंखला [दोहा क्र २१]विजय तिवारी " किसलय "http://www.blogger.com/profile/14892334297524350346noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-5581964230009177583.post-2478752323732282212009-01-28T00:31:00.000+05:302009-01-28T00:31:00.000+05:30शानदार बात कही साहब आज के दोहे में।शानदार बात कही साहब आज के दोहे में।बवालhttps://www.blogger.com/profile/11131413539138594941noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5581964230009177583.post-18836119716308438032009-01-18T22:15:00.000+05:302009-01-18T22:15:00.000+05:30प्रेम जीअभिवंदनदोहे की प्रसंशा के लिए धन्यवाद-वि...प्रेम जी<BR/>अभिवंदन<BR/>दोहे की प्रसंशा के लिए धन्यवाद<BR/>-विजयविजय तिवारी " किसलय "https://www.blogger.com/profile/14892334297524350346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5581964230009177583.post-81881121243068001472009-01-18T09:05:00.000+05:302009-01-18T09:05:00.000+05:30उतने स्वप्न संजोइये,जितने हों साकार ।नाकामी को देख...उतने स्वप्न संजोइये,<BR/>जितने हों साकार ।<BR/>नाकामी को देखकर,<BR/>होता दिल बेजार ॥<BR/>Kislay ji ,<BR/>bahut khoob likha. badhaai ho.Prem Farukhabadihttps://www.blogger.com/profile/05791813309191821457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5581964230009177583.post-11541751464016147012009-01-16T23:28:00.000+05:302009-01-16T23:28:00.000+05:30प्रिय मित्र "अनुज जी "अभिवंदनआपको यहाँ देख कर हार...प्रिय मित्र "अनुज जी "<BR/>अभिवंदन<BR/>आपको यहाँ देख कर हार्दिक प्रसन्नता हुई .<BR/>आपने मेरे दोहों की प्रशंसा की, यही मेरी पूंजी है.<BR/>आपको भी सपरिवार नव वर्ष की शुभ कामनाएँ.<BR/>- विजयविजय तिवारी " किसलय "https://www.blogger.com/profile/14892334297524350346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5581964230009177583.post-68540645708806418322009-01-16T23:23:00.000+05:302009-01-16T23:23:00.000+05:30प्रतिमा वत्स जी अभिवंदन आप मेरे ब्लॉग पर पहुँचीं ...प्रतिमा वत्स जी <BR/>अभिवंदन <BR/>आप मेरे ब्लॉग पर पहुँचीं और दोहा पढा , अच्छा लगा<BR/><BR/>- विजयविजय तिवारी " किसलय "https://www.blogger.com/profile/14892334297524350346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5581964230009177583.post-45129774045317144162009-01-16T22:13:00.000+05:302009-01-16T22:13:00.000+05:30HAPPY NEW YEAR TO U AND UR FAMILY APKE DOHE BAHUT ...HAPPY NEW YEAR TO U AND UR FAMILY APKE DOHE BAHUT ACHCHE LAGEVIJAY NEMA "ANUJ"https://www.blogger.com/profile/01583614316507909584noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5581964230009177583.post-1773889459733311502009-01-16T21:45:00.000+05:302009-01-16T21:45:00.000+05:30काव्य रूप में सच पढ़ने को मिला,अच्छा लगा।धन्यवाद,काव्य रूप में सच पढ़ने को मिला,अच्छा लगा।<BR/>धन्यवाद,pritima vatshttps://www.blogger.com/profile/08539375776514158033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5581964230009177583.post-38904071042331733652009-01-16T21:29:00.000+05:302009-01-16T21:29:00.000+05:30धन्यवाद जिमी जी. -विजयधन्यवाद जिमी जी. <BR/>-विजयविजय तिवारी " किसलय "https://www.blogger.com/profile/14892334297524350346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5581964230009177583.post-15689093039094305462009-01-16T20:43:00.000+05:302009-01-16T20:43:00.000+05:30"व्यक्ति पहले तो कल्पना में जीना शुरू कर देता है औ..."व्यक्ति पहले तो कल्पना में जीना शुरू कर देता है और बाद में परेशान होता है". बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति प्रेषित की है बृजमोहन जी. <BR/>आभार<BR/>- विजयविजय तिवारी " किसलय "https://www.blogger.com/profile/14892334297524350346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5581964230009177583.post-85017167838441687942009-01-16T18:56:00.000+05:302009-01-16T18:56:00.000+05:30किसलय जी / अच्छी बात कही है / ""नींद आख़िर उड़ गई ब...किसलय जी / अच्छी बात कही है / ""नींद आख़िर उड़ गई बस करवटें बदला करो ,हम न कहते थे सुहाने ख्वाब कम देखा करो ""व्यक्ति पहले तो कल्पना में जीना शुरू कर देता है और बाद में परेशान होता है /बहुत ठीक कहा आपनेBrijmohanShrivastavahttps://www.blogger.com/profile/04869873931974295648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5581964230009177583.post-31539855455475875422009-01-16T09:44:00.000+05:302009-01-16T09:44:00.000+05:30महेंद्र जीनमस्कारआपने भी बहुत अच्छा लिखा हैबात ...महेंद्र जी<BR/>नमस्कार<BR/>आपने भी बहुत अच्छा लिखा है<BR/>बात सच है कि हमें अपने संसाधनों को देखते हुए ही विस्तार अथवा संकुचन करना चाहिए <BR/><BR/><B>उतने पैर फैलाइये जितनी चादर होय<BR/>उतने पैर सिकोडिये जितनी चादर होय </B><BR/><BR/>- विजयविजय तिवारी " किसलय "https://www.blogger.com/profile/14892334297524350346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5581964230009177583.post-57877288234691445952009-01-16T09:27:00.000+05:302009-01-16T09:27:00.000+05:30विजय भाई आपके दोहे पढ़कर बहुत अच्छा लगता है जो सभी...विजय भाई <BR/>आपके दोहे पढ़कर बहुत अच्छा लगता है जो सभी को अच्छा संदेश देते है .<BR/>एक लाइन <BR/>उतने पैर फैलाइये जितनी चादर होय<BR/>उतने पैर सिकोडिये जितनी चादर होय <BR/>ये लाइन मैंने कही सुनी है कि आदमी को सपने सीमा के अन्दर ही संजोने चाहिए . <BR/>महेंद्र मिश्रासमयचक्रhttps://www.blogger.com/profile/05186719974225650425noreply@blogger.com