मंगलवार, 13 जनवरी 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र १९]

मुखिया ही परिवार का ,

भूले जब दायित्त्व।

क्या उसका बच पायेगा,

'निज गृह ' में अस्तित्त्व ॥

- किसलय

10 टिप्‍पणियां:

Prem Farukhabadi ने कहा…

Tiwari ji
Bahut khoob likha aapne. aapki kavita ek sabak deti hai. Badhaai ho .

बवाल ने कहा…

बिल्कुल वाजिब फ़रमाते आप ‘किसलय’ साहब. मुखिया का अपने दायित्व को भूलना उसके लिए ही हानिकारक है. दोहा अच्छा बन पड़ा.

महेंद्र मिश्र.... ने कहा…

प्रेरक

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

प्रेम जी
अभिवंदन
आपने मेरे दोहे पर अपनी प्रतिक्रिया दी,
ब्लॉग पर आए यही मेरी उपलब्धि है
आभार
-विजय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

भाई जी
आपसे साहित्यिक परिचय तो है लेकिन आप मिल कब रहे हैं ?
टिप्पणी के लिए आभार
- विजय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

महेंद्र भाई बस आपका स्नेह बना रहे
यही उम्मीद रखता हूँ.
आप का स्नेह ही मेरी प्रेरणा है
-विजय

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सटीक कहा-दोहा सुन्दर एवं चुटीला है.

समयचक्र ने कहा…

मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामना .

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

आदरणीय समीर जी
अभिवंदन
आपको दोहा अच्छा लगा,
एक साहित्यकार को इससे ज्यादा और क्या चाहिए ...
आभार
- विजय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

महेंद्र भाई
आपको भी सपरिवार मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ..
- विजय