मन आँगन, जग विकसित होता, यंत्र, तंत्र, गुण, ज्ञान से . कर्मक्षेत्र में मिले सफलता, प्रिय-स्वजनों के मान से ॥ याचक मन से होकर शिक्षित, प्रायः प्रगति करे हर प्राणी. चीन्हा जाता वही हमेशा, --जो बोले सच, सीधी वाणी .. - किसलय
भाई राजेश जी ये वाकई सच है कि सीधा-सच्चा बोलने से आगे -पीछे न ही कुछ छुपाना पड़ता है और नही कुछ याद रखना पड़ता है, मुझे हार्दिक खुशी हुई , कि आप भी हमारा ध्यान रखते हैं आपका - विजय
हेम जी आपने सही पहचाना.. ये साहित्य लेखन की एक प्राचीन विधा है, जिसे "आद्याक्षरी-विधा " कहा जाता है, इसमें रचना के पूर्व की लाइनों के प्रथमाक्षरों से कोई न कोई सार्थक नाम बनता है वहीं लाइनों के आख़िर में तुकबंदी पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता . साथ ही भावों की एक रूपता का भी ध्यान रखा जाता है आपने मेरी रचना पढ़ी, उस पर शोध किया, टिप्पणी लिखी, हम आपके आभारी हैं. आपका - विजय
बहुत प्रभावशाली और यथाथॆपरक रचना है । आपकी पंिक्तयां हृदयस्पशीॆ है । भाव और िवचार के समन्वय ने रचना को मािमॆक बना िदया है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है- आत्मिवश्वास के सहारे जीतंे िजंदगी की जंग-समय हो पढें और प्रितिक्रया भी दें-
भाई जी नमस्कार सर्वप्रथम नव वर्ष पर मेरी अशेष शुभ कामनाएं स्वीकार करें. आपको मेरी बात अर्थ पूर्ण लगी ,ये मेरे लिए और मेरे साहित्य के लिए गर्व की बात है आप अवश्य मिलें, या हमें पता दें, हम ही आप से मिलने चले आते हैं,
10 टिप्पणियां:
koshis jaari hai vijay ji saachi aur sidhi vaani bolne ki . sundar rachna BADHAI .
लगता है कविता मयंक, प्रिया और प्राची को समर्पित है.
भाई राजेश जी
ये वाकई सच है कि सीधा-सच्चा बोलने से आगे -पीछे
न ही कुछ छुपाना पड़ता है और नही कुछ याद रखना पड़ता है,
मुझे हार्दिक खुशी हुई , कि आप भी हमारा ध्यान रखते हैं
आपका
- विजय
हेम जी
आपने सही पहचाना..
ये साहित्य लेखन की एक प्राचीन विधा है, जिसे "आद्याक्षरी-विधा " कहा जाता है, इसमें रचना के पूर्व की लाइनों के प्रथमाक्षरों से कोई न कोई सार्थक नाम बनता है वहीं लाइनों के आख़िर में तुकबंदी पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता .
साथ ही भावों की एक रूपता का भी ध्यान रखा जाता है
आपने मेरी रचना पढ़ी, उस पर शोध किया, टिप्पणी लिखी, हम आपके आभारी हैं.
आपका
- विजय
बहुत प्रभावशाली और यथाथॆपरक रचना है । आपकी पंिक्तयां हृदयस्पशीॆ है । भाव और िवचार के समन्वय ने रचना को मािमॆक बना िदया है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है- आत्मिवश्वास के सहारे जीतंे िजंदगी की जंग-समय हो पढें और प्रितिक्रया भी दें-
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डॉ. अशोक जी
अभिवंदन
आपके द्बारा टिपण्णी से
निश्चित ही मेर हौसला बढेगा
धन्यवाद
- विजय
प्रिय किसलय जी, बड़ी अर्थपूर्ण बात कही साह्ब आपने ।
पूना जाने के पहले अबके आपसे मिलकर ही जाऊंगा ।
भाई जी
नमस्कार
सर्वप्रथम नव वर्ष पर मेरी अशेष शुभ कामनाएं स्वीकार करें.
आपको मेरी बात अर्थ पूर्ण लगी ,ये मेरे लिए और मेरे साहित्य के लिए गर्व की बात है
आप अवश्य मिलें, या हमें पता दें, हम ही आप से मिलने चले आते हैं,
बात एक ही , और वो है मेल-मिलाप
आपका
- विजय
It seems my language skills need to be strengthened, because I totally can not read your information, but I think this is a good BLOG
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