रविवार, 28 दिसंबर 2008

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र. १४]

कालिख बनती दीप से,
कमल कीच संतान
सज्जन घर दुर्जन मिलें,
खल घर मिलें सुजान

- किसलय

3 टिप्‍पणियां:

महेंद्र मिश्र.... ने कहा…

कालिख बनती दीप से,
कमल कीच संतान।
सज्जन घर दुर्जन मिलें,
खल घर मिलें सुजान ॥
विजय भाई बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ है .
सही है कि कालिख की उत्पत्ति दीप से
और कमल कीचड में होता है. सज्जन और सुजान के घर खल
और दुर्जन भी मिलते है . भाई आपके दोहो ने मनमोह लिया है .
बहुत ही सटीक और उम्दा लिखते है . बधाई .

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

भाई मिश्रा जी
सादर नमस्कार
आप मेरे ब्लॉग तक पहुँचते हैं , ये मेरा सौभाग्य है
आपने कहा-" आपके दोहो ने मनमोह लिया " तो मैं ये कहना चाहूंगा कि
ये सब आप जैसे साहित्यकारों के साथ का ही असर है
प्रसंशा के लिए आभार
आपका
विजय

बेनामी ने कहा…

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