रविवार, 14 दिसंबर 2008

दोहा श्रृंखला [ दोहा क्र. 11 ]

मन की आँखें खोलकर, देखा जग चहुँ ओर।
मिली कहीं दुःख की घटा, कहीं खुशी की भोर॥
-विजय तिवारी ' किसलय '

8 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

बहुत बढ़िया दोहा
बधाई विजय जी
महेंद्र मिश्रा
जबलपुर.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर दोहा है।

shivraj gujar ने कहा…

bahoot khoob, manbhavan.
mere blog (meridayari.blogspot.com)par bhi aayen.

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

मिश्रा जी
मेरे ब्लॉग http://www.hindisahityasangam.blogspot.com
पर पधार कर आपके
द्बारा हौसला अफजाई
करने के लिया आभार

आपका
विजय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

परमजीत बाली जी
नमस्कार
आदरणीय
आपका स्नेह मुझ पर बना है
आपका आभारी हूँ
मैंने ये दोहा श्रृंखला शुरू की है
इसे आगे बढ़ने हेतु
प्रयासरत रहूँगा
आपका
विजय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

शिव राज जी
नमस्कार
आप मेरे ब्लॉग पर आए और अपनी टीप दी,
अच्छा लगा
आपका
विजय

bijnior district ने कहा…

बहुत बढ़िया दोहा। बधाईं

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

अशोक मधुप जी
नमस्कार
हमारी रचना पढने के लिए
हम आपका आभार व्यक्त करते हैं
उम्मीद है आप स्नेह बनाये रखेंगे
आपका
विजय