बुधवार, 10 दिसंबर 2008

दोहा श्रृंखला [ दोहा क्र. १० ]

अनचाहे की भूल पर,

व्यक्त करे जो खेद ।

उसकी निश्छल नियति पर,

फ़िर न हो मतभेद ....

- विजय तिवारी ' किसलय '

10 टिप्‍पणियां:

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सही।

कडुवासच ने कहा…

... बहुत सुन्दर ।

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

भाई परमजीत जी
सादर नमन
आपका स्नेह मिलता रहता है है, हम आपके आभारी हैं
आपका
विजय तिवारी किसलय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

भाई रवींद्र प्रभात जी
नमस्कार
हमारे ब्लॉग पर आगमन हमारे लिए अतिथि देवो भव जैसा है.
स्नेह बनाये रखें
आपका
विजय किसलय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

भाई श्याम कोरी 'उदय'जी
नमस्कार

मैंने दोहा श्रृंखला शुरू की है,
उम्मीद करता हूँ एक लंबे
अरसे तक जारी रहेगी
आपका आभारी हूँ

विजय तिवारी 'किसलय '

सुनीता शानू ने कहा…

वाह क्या बात है, यहाँ आकर अच्छा लगा, बहुत अच्छा लिखते है आप, बधाई स्वीकारें...

BrijmohanShrivastava ने कहा…

भूल करना तो है मनुष्य का स्वाभाव किंतु मूल में तो भावना पुनीत होनी चाहिए
साँस धारने के पूर्व ठीक से विचार लो कि साँस धारने की कौन नीति होनी चाहिए

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

सुनीता जी
सर्व प्रथम हमारा अभिवंदन स्वीकारें.
आपका उत्प्रेरण निश्चित रूप से
संबल प्रदान करेगा,
आभार.
आपके ब्लॉग पर हिन्दी निकष
देखकर भी अच्छा लगा ,
आननद कृष्ण जी मेरे अनुज सदृश हैं
हम लोग जबलपुर म. प्र में कुछ न
कुछ करते ही रहते हैं
मुझे उम्मीद है भविष में भी आप
से साहित्यिक स्नेह बना रहेगा
आपका
विजय तिवारी

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

बृजमोहन जी
सादर अभिवंदन
भूल करना तो है मनुष्य का स्वाभाव किंतु मूल में तो भावना पुनीत होनी चाहिए
साँस धारने के पूर्व ठीक से विचार लो कि साँस धारने की कौन नीति होनी चाहिए
सच में आपकी पंक्तियाँ भी प्रशंसनीय हैं
सच में इंसान स्वभावतः सज्जन होता है , लेकिन परिस्थितियाँ उसे दिग्भ्रमित कर देती हैं
आपका
विजय