विश्वजीत की दवा कंपनी ने उसे करोड़पति बना दिया था ।
आलीशान कोठी और संम्पन्नता देखते ही बनती थी ।
बच्चे कान्वेंट स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे,
बस विश्वजीत अपने बड़े लड़के की बीमारी को लेकर
कुछ दिनों से परेशान थे .
अच्छी से अच्छी चिकित्सा के बाद भी स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो रहा था ।
चर्चा के दौरान डॉक्टर ने निश्चिंत रहने का आश्वाशन देते हुए
विश्जीत से कहा कि मैं कुछ दवाईयां बदल देता हूँ ,
जिससे और जल्दी आराम लगेगा ।
नई दवाईयों से दूसरे दिन लड़के की हालत और ज्यादा बिगड़ गई ।
डॉक्टर समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर ऐसा क्यों हुआ ।
आराम की जगह बीमारी क्यों बढ़ी .
जिस समय विश्वजीत की नज़र वहाँ रखी
अपनी कंपनी द्बारा निर्मित
नकली दवाई पर पडी
तब तक देर हो चुकी थी ।
- विजय तिवारी " किसलय "
2 टिप्पणियां:
लेकिन ऐसा होता कहाँ है.... ग़लत करने वाले अपने बनाए गड्ढों में गिरते ही कहाँ हैं...!!!
आदरणीय भूतनाथ जी
सादर अभिवंदन
आपकी बात आज के युग में सोलह आने खरी लगती है,
लेकिन साहित्यकार होने के नाते, हम सममाज को
दिशा तो दे ही सकते हैं.और मैं भी यही प्रयास कर
रहा हूँ.आप मेरी रचना तक पहुंचे,आपने पढा,
और पढ़ कर हकीकत बयान की हम आपके
आभारी हैं.
उम्मीद है आगे भी स्नेह बनाये रखेंगे
आपका
विजय तिवारी 'किसलय '
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