सोमवार, 15 सितंबर 2008

सहजता और सरलता के पर्याय भाई रमाकांत ताम्रकार

भाई रमाकांत ताम्रकार एक ऐसे
व्यक्तित्व का नाम है जो
सहजता और सरलता का पर्याय है
जबलपुर की कहानी विधा को
गति देने में ताम्रकार जी और
उनके संगठन "कहानी मंच " की
गतिविधियाँ सदैव याद की जाती रहेंगी .
साहित्यकार अपनी लेखनी का उपयोग
अपनी अभिव्यक्ति के लिये करता है,
विधा कोई भी हो सकती है।



आज हम कहानीकार रमाकांत जी की
काव्यविधा का एक मोती चुन कर
आपके समक्ष रख रहे हैं :-

समर्पण
मुझसे था प्यार का वादा
हर पग पर जीने का साथ

पर तुम चली गईं
दूसरे के खयालों में
उसने समझा इस बात को

आज की भूल-भुलैयाँ में, व्यस्त तुम
भूल गईं उन वादों को
उसने माना नहीं बुरा

बात तुम करती थीं,सिर्फ मतलब की
फिर भी उसे आस थी,
अपने निश्छल प्यार पर
कि वापस आओगी एक दिन

अपने कष्टों और जीवन संघषों में
उसने आँसू बहाए अकेले ही
जब भी तुम्हें तकलीफ हुई
वह रोया तुम्हारी यादोँ के साथ
उसने बिछाए फूल तुम्हारे लिए
छुन लिए काँटे उसने , अपने लिए

जब तुमने कहा -
तुम्हारा प्यार अब जरूरी नहीँ मेरे लिए
उसने फिर भी दुआ की तुम्हारे लिए,

और वह चल पड़ा
अँधेरी घटाटोप सुरंग में
फिर कभी न लौटने के लिए

प्रस्तुति :- डॉ. विजय तिवारी " किसलय "

2 टिप्‍पणियां:

Ashish ने कहा…

:) nice, keep it up

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

maharaj jee
namaskaar
aapne samarpan padhi. achchha laga .
aisa hi sneh banaye rakhen.

aapka
vijay