कमज़ोरी
हिरणियों की तरह मैंने भी भरी थी कुलाँचें
खेली थी लुकाछिपी
माँ को भी दौड़ाया था अपने पीछे
जो खिलाना चाहती थी एक निवाला
सहेलियों को पीटकर मैं भी दुबकी थी
घर के किसी कौने में
चहेती बहन-भाई में, अव्वल थी पढ़ाई में
जीते थे ढेरों पुरस्कार
मैंने भी सजाये थे सतरंगी सपने
अपने भावी जीवन के
मन में था विश्वास औरों सा जीवन जीने का
पाला था भ्रम अपनों से प्यार पाने का
सपने सच हों ये जरूरी नहीं होता
जैसे कि भविष्य का पता नहीं होता
हम जो जीते हैं वही अतीत बन जाता है
अक्सर अतीत स्मृतियों में आता है
कभी मन को दुख, कभी खुशी दिलाता है
कल के खुशनुमा पल आज दुख पहुँचाते हैं
क्योंकि हम उन्हें फिर से जीना चाहते हैं
संजोये सपनों को साकार देखना चाहते हैं
किस्मत, कर्म और समय का समीकरण
सारी कायनात चलाता है
कहीं राजा तो कहीं भिखारी बनाता है
वही पल जानलेवा वही जिन्दगी दे जाता है
दुनिया में सबके साथ यही होता है
तभी तो कोई आगे और कोई पीछे होता है
हम अकेले होते तो प्रतिस्पर्धा क्यों होती ?
जिन्दगी पैसों और खुशियों को क्यों तरसती ?
मैंने भी नजदीक से देखी है जिन्दगी
ज्यादा मिले हैं गम, कम मिली पसंदगी
जितना सहा, उससे ज्यादा
किस्मत ने बोझ लादा
अब तो मैं पाषाण बन गई हूँ
इन्सान से बुत बन गई हूँ
दर्द का एहसास नहीं होता
दिन, महीना कुछ खास नहीं होता
पहले बस जिये जा रही थी
मौत भी तो नहीं आ रही थी
पर अब, अपने लिये मर चुकी हूँ
आपके लिये जी रही हूँ
अपनी खुशियाँ तुम्हें बाँटती हूँ
खुद सहकर दुख हँस देती हूँ
जिन्दगी मेरी अब पीले पत्तों - सी है
जो भाग्य की आँधी में उड़कर
राह में कुचलकर हो जाती है
एक दिन आग के हवाले
और बनकर राख खो जाती है
अज्ञात की अनन्त गहराई में
फिर भी आरजू है खुदा से कि
मुझे एक और मौका दे
कमजोरी की जगह हौसला दे
जो औरों के लिये भी काम आये
नीर और समीर जैसा,
सबके जीवन को महकाये...
- डॉ। विजय तिवारी " किसलय "
जबलपुर, भारत
6 टिप्पणियां:
मैंने भी नजदीक से देखी है जिन्दगी
ज्यादा मिले हैं गम, कम मिली पसंदगी
जितना सहा, उससे ज्यादा
किस्मत ने बोझ लादा...
bahut sundar abhivyakti. dhanyawaad tiwari ji
आदरणीय महेन्द्र मिश्र जी
नमस्कार
आपने मेरा ब्लॉग देखा, मेरी रचना "कमजोरी " पढ़ी, उस पर प्रतिक्रिया प्रेषित की.
मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप जैसे साहित्यिक मित्र मिले.
ऐसा ही अपनत्व प्रदान करते रहिये.
आपका
किसलय
मैंने भी नजदीक से देखी है जिन्दगी
ज्यादा मिले हैं गम, कम मिली पसंदगी
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलो के तपाक से
ये नए मिजाज का शहर है ज़रा फासलों से चला करो
बहार हाल पोस्ट में ये सब मिला
kamobesh kai posh dekha.aapke pryaas beshak sarahniye hain.
aap jabalpur ke hai.
bhai, sanskaar dhaani nagri hai.
thanks shahroz bhai
aapne mere blog ko dekha prashasa ke..
mai aapka aabhari hoon
aapka
Dr. Vijay Tiwari "Kislay"
jabalpur
thanks shahroz bhai
aapne mere blog ko dekha prashasa ke..
mai aapka aabhari hoon
aapka
Dr. Vijay Tiwari "Kislay"
jabalpur
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