रविवार, 10 अगस्त 2008
मित्रों के मित्र सुमित्र
हिन्दी साहित्य एवं हिन्दी साहित्यकारों से संबंधित संपूर्ण राष्ट्र में सन्स्कारधानी जबलपुर का नाम रौशन करने वाले डॉ. राज कुमार सुमित्र को नगर का हर बच्चा- बूढ़ा आदर से संबोधित करता है, उनकी सहजता और सरलता ही उनकी पहचान है सत्ताईस मई सन उन्नीस सौ पैंसठ को प्रकाशित " श्रद्धा के फूल " पुस्तक से ली गई उनकी रचना स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है ---
काल दन्शित दस दिशाएं
दग्ध दिनकर मौन है
चंदन चिता पर सो गया
लेकर विदा यह कौन है
आह , इसका मुख कि जिससे
हो रहा आलोक प्लावन
संपुटित ज्यों पुण्य गीता
वेद के श्लोक - पावन
सिद्धि के सोपान वर से ये अधर
कि शांति के स्वर मुखर होकर
बोलना ही चाहते हैं पाँव हैं
या प्रगति के पर्याय
संभावना के ये सफल समुदाय
मानो डोलना ही चाहते हैं
स्यात्-यह निद्रा अरुक छन्दी
यात्रा की श्रान्ति है
किंतु यह निष्कंप है
कैसी भयाकुल शांति है
वातावरण में भ्रांति है
जलती चिता की गोद में
जो शीश रख कर सो रहा
कितना तरुण है
झेल वज्राघात बूढ़े पिता सा
देखता आकाश
दृश्य यह कितना करुण है
ज्वाल के सम्मुख लिए जल
और भी जन हैं
जिनके टूटते मन हैं
ठीक ऐसी ही दशा में
भू, हवा, पर्वत, किरण,
वन और सुमन हैं
त्यक्त वस्त्रों सी पड़ी
निष्पन्द ये परछाईयाँ
मानो किसी का
शापमय आदेश हो
लग रहा जैसे कि
खंडित मूर्तियों का देश हो
पाषाण जैसे प्राण भी तो
कर रहे आँसुओं में सन्तरण,
क्योंकि निष्प्रभ हो गई है
सभ्यता की व्याकरण
आह ! मेरे प्रश्न बालक
खो गये पगवाट में,वनवाट में
और उनके उत्तरों का ध्रुव
कि वह तो सो गया है
शान्तिवन के घाट में
प्रस्तुति ---
डॉ विजय तिवारी " किसलय"
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3 टिप्पणियां:
डॉ विजय तिवारी " किसलय"
के ब्लॉग पर महान चिन्तक मित्रों के मित्र
"सुमित्र जी "की रचना ने अभिभूत किया
शुभ कामनाएं
गिरीश जी,
प्रतिक्रियाओं से लेखन में उत्साहवर्धन होता है
और दिल के किसी कौने में लेखन की सफलता के अंकुरण का भी एहसास होता है
काश ये भावनाएँ सभी में जागृत हो.
आपका
किसलय
Vijay ji
aapke ki kalam se ke nari ke ki bhavnayon ko padhkar bahut acha laga. ek purush hokar nari ke dilko samajhna aor us kagaz par likhnabahut mayne rakhta hai.
yumhi aap likhte rahiye dil se dua karti hoon.
aapki dost
nira
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