नीर करे कलकल नदियों में
.............लहरें उठें समुन्दर में ।
राहत पायें सारे प्राणी ,
...........अनुपम धरा-धरोहर में ॥
राहें खिलें सुमन-कलियों सी,
.............दिखे चतुर्दिश हरियाली।
जलज बिखेरें छटा गुलाबी,
................भली लगे टेसू-लाली ॥
पागल भँवरे शोर मचाएँ,
.............कूके कोयल मतवाली ।
ल क्ष्य बना लो ' सृष्टि' जैसा,
............सदा मिलेगी खुशहाली ॥
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-डॉ विजय तिवारी '' किसलय"
जबलपुर, मध्य प्रदेश, इंडिया
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