बुधवार, 16 मार्च 2011

आपने विश्व में ५०० या ५०० से अधिक पृष्ठों वाली मुक्त छंद की एक ही कविता बारे में सुना या पढ़ा है तो कृपया बताएँ ?

               आज सुबह-सुबह मैं चाय की चुसकियों के साथ अखबार के पन्नों में किसी शुभ समाचार को खोज ही रहा था कि मोबाइल की घंटी बज उठी.

      स्क्रीन पर अपने "आत्मीय" का नाम देखकर चेहरे पर चमक सी आ गयी.

आन्सर बटन दबाते ही "प्रणाम" कहा.

"आप कैसे हैं" हाल पूछा.

"खैरियत है " सुनकर संतोष हुआ.

            कुछ साहित्यिक बातों के पश्चात उन्होंने जब मुझसे पूछा कि-

'विजय',  तुमने कभी कोई इतनी लम्बी "छंदमुक्त कविता" पढ़ी या सुनी है जो ५०० या ५०० से अधिक पृष्ठों की हो?

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि आखिर वे ऐसा क्यों पूछ रहे हैं..

        मैंने उन्हें बड़े सहज भाव से उत्तर दिया कि पढने- सुनने की तो छोडो, मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर पाया कि किसी ने मुक्त छंद की इतनी लम्बी एक कविता लिखी भी होगी !!

               फिर उन्होंने अगला प्रश्न किया कि तुम एक ब्लॉगर हो. इसलिए अपने वैश्विक मित्रों से इतना पता करो कि क्या वे हिंदी में इतनी बड़ी " एक ही कविता" के बारे में जानते हैं ?

                    तब मैंने फिर सहज भाव से कहा कि-  हाँ मैं ये बात अपने ब्लॉगर बंधुओं से अवश्य पूछूँगा.

तो साथियो!
            आप सब मेरी मदद कीजिये और पता करके सकारात्मक या नकारात्मक टिप्पणी अवश्य भेजिए.

                        यदि आप सफल नहीं हुए तो मैं समझूँगा कि मेरे "आत्मीय" ही विश्व के पहले कवि होंगे जिनका नाम, परिचय और उस लम्बी रचना के कुछ अंश आप सभी के समक्ष भविष्य में जरूर प्रस्तुत करूँगा.
               उम्मीद है आप मेरी खातिर इतना जरूर करेंगे.


- विजय तिवारी "किसलय"

7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति!
इस सम्बन्ध में आगे भी पढ़ने की इच्छा है!
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

किलर झपाटा ने कहा…

सर मुझे तो यही नहीं पता कि छंदमुक्त कविता भी होती है। एक्चुअली आय डोंट बिलीव इन छंदमुक्त कविता या नई कविता। नई कविता इज़ ओनली द हताशा ऑफ़ दोज़ कवीज़, दोज़ हू आर एक्चुअली नॉट एट ऑल कवीज़। हा हा।
बुरा डोंट मानिये होली है।

Dr Varsha Singh ने कहा…

आपने जानने की जिज्ञासा जगा दी .......
कृपया इस सम्बन्ध में आगे भी अवगत कराइयेगा .

आपको सपरिवार होली पर अग्रिम वासन्ती शुभकामनायें..

Udan Tashtari ने कहा…

सुनी तो नहीं, किन्तु जानने की इच्छा है.

Sunil Kumar ने कहा…

यह तो मालूम नहीं है मगर मुक्तिवोध जी की रचना' चाँद का मुंह टेढ़ा ' जरुर पढ़ी है |

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

इसकी जानकारी नहीं है ..जानने की अभिलाषा है

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

आगे की जानकारी की प्रतीक्षा है