सोमवार, 1 नवंबर 2010

नाटक के बहाने- ४ : बचनबद्ध "चरणदास चोर" राजा बनने की बजाय सजा-ए-मौत चुनता है.

छत्तीसगढ़ की लोक परम्पराएँ, जीवनशैली, आदिवासी कलाएँ, पंडवानी सहित लोकगीत एवं नृत्य जगप्रसिद्ध हैं. बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ भोले-भाले आदिवासी आज भी पुरानी परम्पराओं को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाते जा रहे हैं. इनकी संस्कृति, इनके रहन-सहन और मुरझाए चेहरों का व्यवसायिक लाभ तो सभी उठाते हैं परन्तु वास्तविकता ये है कि आज भी इनका जीवन स्तर अभावग्रस्त ही है. स्वर्गीय हबीब तनवीर जी, तीजन बाई आदि ने विश्व में जो कला की छत्तीसगढ़ी छवि बनाई है उससे बाहरी लोगों का इस ओर निश्चित रूप से झुकाव बढ़ा है.  बदलाव समय का तकाजा है और प्रकृति की नियति भी. छतीसगढ़ कुछ दशकों से प्रगति पथ पर तीव्र गति से अग्रसर हुआ है. लोग जागरूक हुए हैं. प्रगति दूर-दराज़ के गाँवों तक दस्तक दे रही है. साहित्य, संगीत, कला एवं परम्पराओं के ' संवाहक तथा सृजकही समाज में रची-बसी कड़ियों को टूटने नहीं देतेअपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर विधाओं को अगली पीढी तक पहुँचाने का कार्य करने वाले ये व्यक्तित्व पूज्यनीय और चिर स्मरणीय हैंइन जाने अनजानों को आज भी वह सम्मान प्राप्त नहीं है जिसके ये वाजिब हकदार हैंइनकी प्रशंसा एवं इनका सम्मान ही हमारी कला और संस्कृति का सम्मान हैकुछ ही लोग होते हैं जिनको अपने कर्म, भाग्य और प्रयत्नों से जगजाहिर होने के अवसर मिलते हैं. शेष उसी माटी में पैदा होते हैं और उसी के इर्दगिर्द अपनी खुशबू फैलाकर दुनिया से विदा ले लेते हैं. छतीसगढ़ी लोकशैली के नृत्य गायन की बात करें तो अनपढ़ तीजन बाई "पंडवानी" के बल पर विश्व स्तरीय ख्याति अर्जित कर चुकी हैं. नाटक और अभिनव की बात करें तो छत्तीसगढ़ के स्वर्गीय हबीब तनवीर का नाम पुस्तक के आमुख की तरह सामने आता है. पूरा जीवन कलासाधना में लगा देने वाले और छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े इलाके का नाम दुनिया के नक़्शे पर उकेरने वाले इस शख्स ने अपने छतीसगढ़ को सदैव सर्वोपरि रखा. आजीवन सक्रिय नाट्यकला से जुड़े रहकर और दक्षता के बल पर अपनी विश्वस्तरीय छाप छोड़ने में भी कामयाब हुए. इनकी अभिनय क्षमता का लाभ सिने-संसार पूरी तरह से नहीं उठा पाया. नया थियेटर संस्था के माध्यम से विभिन्न नाटकों ने प्रसिद्धि पाई है. इनकी इस विरासत को अब उनकी बेटी नगीन तनवीर कितना सम्हालेंगी ये तो वक्त ही बतायेगा लेकिन नया थियेटर में वो बात कहाँ जो हबीब तनवीर के समय थी.

दिनांक ३० अक्टूबर २०१० को जबलपुर के तरंग प्रेक्षागृह में विश्व के कई देशों में धूम मचाने वाले छतीसगढ़ी नाटक 'चरणदास चोर' का मंचन हुआ. अवसर था विवेचना जबलपुर का १७वाँ राष्ट्रीय नाट्य समारोह जिसके पाँच नाटकों में से यह चौथी प्रस्तुति थी. नाटक के नाम से ही तरंग प्रेक्षागृह में दर्शकों की उपस्थिति अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक थी. नाटक 'चरणदास चोर' की शुरुआत ही चोर के पीछे भागती पुलिस के दृश्यांकन से होती है. चरणदास एक चतुर और वाक् पटु युवक है जो चोरी को अपनी रोजी और धर्म मानता है. गाँव में आये संत से गुरुदीक्षा के समय गुरु द्वारा चोरी छोड़ने के स्थान पर अपनी चतुराई और तार्किकता से ऐसे चार वचन दे देता है जो उस जैसे चोर के लिए पाना या तो असंभव थे अथवा वह निर्वहन कर सकता था. उन वचनों में झूठ बोलना, सोने चाँदी के बर्तनों में खाना, हाथी पर सवारी करना और राजा बनना भी शामिल थे. लेकन भाग्य की बातें किसे पता होती हैं. धीरे-धीरे यही चारों बाते उसके जीवन में घटती हैं और हर बात पर उसे अपने गुरु को दिए वचन याद जाते हैं. वचनबद्ध चरणदास चोर वैसा नहीं करता जबकि उसे सलाह दी जाती है कि वह अपने गुरु से ये सब करने के लिए माफ़ी माँग कर स्वीकृति ले ले. उसकी ईमानदारी की बात राज्य की रानी के पास तक पहुँचती है जब राज्य के खजाने से वह मात्र मोहरें चोरी कर ले जाता है . दरबार में बुलाये जाने पर जब उसे १० मोहरों का आरोपी बनाया जाता है और जाँच के दौरान पता चलता है कि पाँच मोहरें तो उन्हीं के मुनीम द्वारा ही चुराईं गईं हैं. उसकी ईमानदारी देख कर रानी उससे प्रभावित होकर सम्मान स्वरूप उसे हाथी पर बैठाकर नगर में घुमाने की आज्ञा देती है परन्तु वचन से बंधे चरणदास द्वारा मना करने पर उसे बंदी बना लिया जाता है. सम्मान की बात कह कर बंदी बनाए जाने पर विचलित रानी उसे अपने पास बुलाती है. यहाँ भावातिरेक की स्थिति निर्मित होती है. रानी एक चतुर और ईमानदार राजा की चाहत में उस से विवाह का प्रस्ताव रखती है . इस बार भी चरण दास की किस्मत वचनबद्धता के कारण मात खा जाती है. जब वह राजा बनना स्वीकार नहीं करता तो रानी उस पर झूठा और संगीन आरोप लगाकर उसे सजा--मौत का आदेश दे देती है. यहाँ नाटक में चरणदास चोर की ईमानदारी और वचनबद्धता राज-प्रासाद, धन-दौलत के साथ-साथ चोरी पर भी भारी पड़ती है. यही नाटक का अंतिम एवं अविस्मरणीय दृश्य दर्शकों के दिल को छू जाता है.
                               जब चोर की ईमानदारी और चरित्र की लोग चर्चा करें तो स्वाभाविक है कि चोर चोर के आलावा भी बहुत कुछ होगा. नायक चरण दास की भूमिका का निर्वहन करने वाले पात्र ने सम्पूर्ण नाटक में दर्शकों को बाँधे रखा. हास्य-विनोद, चपलता और ईमानदारी का मिश्रित घोल सहज ही दर्शकों के गले उतरा. पुलिसकर्मी, संत, पुरोहित के पात्रों का सधा हुआ अभिनय सराहनीय रहा. संगीतबद्ध लोकगीत गायन और समूहगान से नाटक रसमय बना रहा. नाटक में धार्मिक पूजा-पाठ और रामचरित मानस की पंक्तियों से सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं को बल मिला. रानी के रूप में नया थियेटर की संचालिका स्वयं नगीन तनवीर थीं परन्तु वे अपने सपाट संवादों तथा लचर अभिनय से पात्रानुरूप प्रभाव नहीं डाल सकीं जो नाटक की मांग थी. हबीब जी के निर्देशन में, हबीब जी के समय के पात्रों में जो बात और कशिश दर्शकों ने देखी थी वह इस मंचन से नदारत थी. सच ही कहा गया है की प्रसिद्धि स्वयं चलकर नहीं आती, उसके लिए जीवन की आहुति तक देना पड़ सकती है. अंततः हमें खुशी इस बात की है कि जबलपुर में विवेचना और नगीन तनवीर के नया थियेटर भोपाल के कारण जबलपुर के दर्शकों ने विश्वविख्यात नाटक "चरणदास चोर" की प्रस्तुति देखी और उसे समझा. यह जबलपुर के लिए चिरस्मरणीय रहेगा.

 समीक्षा आलेख एवं प्रस्तुति:











-विजय तिवारी " किसलय "

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आभार इस रपट के लिए. विस्तृत है.

vandana gupta ने कहा…

बहुत ही बढिया जानकारी दी………………आभार्।