बुधवार, 22 सितंबर 2010

वर्तमान पीढी द्वारा पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण हमारे लिए दुर्भाग्यजनक है - डॉ. नलिनी श्रीवास्तव

त्रिवेणी परिषद् जबलपुर मध्य प्रदेश, भारत द्वारा भातखंडे संगीत महाविद्यालय प्रेक्षा गृह में महादेवी वर्मा स्मृति एवं हिन्दी गरिमा दिवस तथा संस्था के रजत जयन्ती वर्ष के कार्यक्रम.

विगत दिवस त्रिवेणी परिषद् जबलपुर, मध्य प्रदेश, भारत द्वारा भातखंडे संगीत महाविद्यालय प्रेक्षागृह में महादेवी वर्मा स्मृति एवं हिन्दी गरिमा दिवस तथा संस्था के रजत जयन्ती वर्ष के कार्यक्रम आयोजित किये गए. कार्यक्रम की शुरुआत वन्दे मातरम, सरस्वती पूजन और पंडित गोविन्द प्रसाद तिवारी के गीत एक राष्ट्र भाषा हिंदी में कोटि कोटि जनता की जय हो से हुई.
कार्यक्रम संचालिका साधना उपाध्याय द्वारा मंचासीन अतिथियों का संस्था-सदस्यों के हाथों स्वागत कराया गया. इस अवसर पर मुख्य अतिथि की आसंदी से स्वर्गीय पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की पौत्री एवं सेंट थामस महाविद्यालय भिलाई की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. नलिनी श्रीवास्तव ने महादेवी जी के व्यक्तित्व तथा  कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि उनकी लेखनशक्ति सजीव एवं जीवन्त है. रचनाएँ मर्म स्पर्शी हैं. कुछ ऐसे है जो नदी की धार में बह जाते हैं पर कुछ हैं जो इतिहास बनाया करते हैं, महादेवी जी ऐसी ही प्रतिभा थीं. उन्होंने आगे कहा कि हमारी वर्तमान पीढी भारतीय संस्कृति को भुलाकर पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण कर रही है जो हमारे लिए दुर्भाग्यजनक है, ऐसे में हमारा दायित्व बनता है कि हम आगे आकर उन्हें अपनी संस्कृति परिचित कराएँ. विशिष्ट अतिथिकी आसंदी से झूले लाल मंदिर प्रबंध समिति प्रमुख श्री मोती लाल पारवानी ने त्रिवेणी परिषद के रजत जयंती वर्ष पर शुभकामनाएँ देते हुए देश को एक सूत्र में पिरोने हेतु हिन्दी की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया. कार्यक्रम अध्यक्ष प्रबुद्ध साहित्यमनीषी डॉ. गोकर्ण नाथ शुक्ल ने आयोजक " त्रिवेणी परिषद  "  को उनके सद्प्रयासों की सराहना की.  उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि हिन्दी हमारी अस्मिता की पहचान है और महादेवी वर्मा इस अस्मिता की प्रखर प्रतिनिधि कवयित्री हैं. हिन्दी की गौरव वृद्धि के लिए कोरे प्रदर्शन नहीं ईमानदारी पूर्वक प्रयत्न किये जाने चाहिए.
इस सारगर्भित आयोजन एवं श्रोताओं की गरिमामय उपस्थिति में मुख्य अतिथि डॉ. नलिनी श्रीवास्तव को त्रिवेणी परिषद सहित नगर की साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया.
कार्यक्रम के प्रथम चरण में जबलपुर संस्कारधानी के सिंधी मातृभाषियों द्वारा यादगार पत्रिका के माध्यम से राष्ट्रभाषा की सेवा के लिए पत्रिका-सम्पादक श्री दिलीप तलरेजा एवं श्री माधव कुन्दनानी सहित सिन्धु समाज के प्रतिनिधियों को " ऊषा देवी मित्रा अलंकरण"  प्रदान किया गया. नवांकुरित लेखिकाओं हेतु प्रतिस्थापित "सुनीति सक्सेना पुरस्कार" लेखिका एवं शिक्षिका श्रीमती विनीता श्रीवास्तव को दिया गया. बारहवीं बोर्ड परिक्षा २०१० में शास्त्रीय संगीत विषय पर जबलपुर में सबसे अधिक अंक अर्जित करने पर मालती बाई ताम्हनकर पुरस्कार कुमारी कंचन महेश कोष्टा को दिया गया. इसके बाद रचना कुन्दनानी ने स्वरचित हिन्दी कविता मैं औरत हूँ .. सब सहती हूँ , पर कुछ नहीं कहती हूँ .. गाकर वाहवाही लूटी.  लता लालवानी, विजय जादवानी ने भी अपनी रचनाएँ सुनाई. अबीरा दांडेकर ने महादेवी जी की रचना सजल कितना है सवेरा ... व नेन्सी ब्राउन ने तुम सो जाओ मैं गाऊँ... रचना का गायन किया . देवेन्द्र नाथ शुक्ला ने दुष्यंत कुमार रचना हो गयी है पीर पर्वत सी, पिघलनी चाहिए... का तथा तनु मिश्रा ने शरद नामदेव के रचनाओं का पाठ किया.
इस कार्यक्रम में डॉ. राजकुमार सुमित्र, डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे, वीणा तिवारी, आभा दुबे, चंद्रा भालेराव, गायत्री तिवारी, मनीषा गौतम, राजेश पाठक प्रवीण एवं सिन्धु समाज के सदस्यों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही.
कार्यक्रम के आभार का दायित्व-निर्वहन डॉ. अंजली शुक्ला द्वारा किया गया.
प्रस्तुति :-














डॉ. विजय तिवारी " किसलय "

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

कार्यक्रम की जानकारी विस्तार से देने का आभार.

नवम्बर में मुलाकात होगी आपसे.

"Nira" ने कहा…

bahut hi acha laga aapka yeh lekh padhkar aor jankari paakar