गुरुवार, 15 जुलाई 2010

आरोपों अथवा दोषों के कारण को समझने में भी हमारी भलाई निहित है

 अक्सर देखा गया है कि जो हमारी कमियाँ या दोषों को इंगित करता है हमें उस पर गुस्सा आता है. हमें उसका इशारा नागवार गुजरता है. कभी कभी तो हम उसके इस सकारात्मक कृत्य पर बदले की दुर्भावना से उसे हानि पहुँचाने की ठान लेते हैं. जो इंसान आपकी गलती को सुधारना चाहता हो, आपकी कमियों को दुरुस्त करने की सोचता हो अथवा एक बार हम मान भी लें कि वह हमारी निंदा कर रहा है तब भी हमें यह मान कर चलना चाहिए कि वह आपका मित्र है. आपकी कमियों, आपके दोषों की ओर आपका ध्यान आकृष्ट कराने वाला सचेतक है. आपको मशविरा देने वाला निःशुल्क सलाहकार है. यदि हम ऐसे समय निश्छल मन से तटस्थ होकर कभी आत्मावलोकन करें तो हमें हमारा निंदक सच में शुभचिंतक नज़र आएगा. यदि वाकई वह हमारी गलत निंदा कर रहा है अथवा गलत दोष निकाल रहा है तब भी हमें धीरज से काम लेना चाहिए क्योंकि आप ऐसा करके अपनी धैर्यशक्ति को और मजबूत बना रहे होते हैं. इस सम्बन्ध में मेरा भी मानना है कि लगाए गए आरोपों अथवा दोषों के कारण को समझने में हमारी ही भलाई निहित है.



कहा भी गया है कि -
" निंदक नियरे राखिये, आँगन, कुटी छबाय .
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल कहां सुभाय "










- विजय तिवारी " किसलय "

5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा सीख विजय भाई!! साधुवाद!

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत अच्छी सीख है अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिये। धन्यवाद।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

आप एकदम सही लिख रहे हैं, हम भी राह चलते ब्‍लाग पर कई बार सही सलाह दे बैठते हैं फिर पता लगता है कि वह व्‍यक्ति रूष्‍ट हो गया।

समयचक्र ने कहा…

विजय भाई आपके विचारों से शतप्रतिशत सहमत हूँ ....

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

शुक्रिया
प्रेरक पोस्ट के लिये