बुधवार, 7 अप्रैल 2010

दोहा श्रृंखला (दोहा क्रमांक ८२ )

सतरंगा पुष्पित चमन,
खगवृन्दों का शोर .
झुरमुट से रवि-रश्मियाँ,
लाती स्वर्णिम भोर ..


- विजय तिवारी " किसलय "

7 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

behtreen

Gautam RK ने कहा…

बहुत शानदार दोहा है सर!!! शुभकामनाएं!!


"राम"

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया दोहा!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत खूब. दोहों के साथ, उनके ही मिज़ाज़ की तस्वीर लगायें तो आनन्द दोगुना हो जाये.

SHAKTI PRAJAPATI ने कहा…

chand,gadya aur padya main ulzha rehta hun.
isi tarah rachnaon se duriyan bana leta hun.

na jane das ke yahan unke prabhu ke SRICHARAN kab padenge

apka

shakti.

shama ने कहा…

Aapne to swarnim bhor aankhon ke saamne khadi kar dee!

Neeraj Kumar ने कहा…

बहुत ही अच्छा///
भोर का चित्रण मनमोहन है///