गुरुवार, 18 मार्च 2010

हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर के आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकारों, चित्रकारों और संगीतज्ञों की बहुआयामी गोष्ठी ( भाग- दो )

हमने शनिवार, २७ फरवरी २०१० की पोस्ट " हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर के आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकारों, चित्रकारों और संगीतज्ञों की बहुआयामी गोष्ठी (भाग- एक) " में वायदा किया था कि हम इस कार्यक्रम के भाग - दो में अंतर राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त लोकगीत गायक एवं संगीतज्ञ पंडित रुद्र दत्त दुबे "करुण" द्वारा संगीतबद्ध की गयी दुष्यंत की रचना एवं हमारे अभिन्न मित्र एवं ब्लॉगर "श्री बवाल" की संगीत प्रस्तुतियाँ अपने ब्लॉग " हिंदी साहित्य संगम जबलपुर " के माध्यम से आपके समक्ष रख रहे हैं :-

पंडित रुद्र दत्त दुबे "करुण" द्वारा संगीतबद्ध की गयी दुष्यंत की रचना

एवं
हमारे अभिन्न मित्र एवं ब्लॉगर "श्री बवाल" की संगीत प्रस्तुति .

- विजय तिवारी " किसलय "
अगले भाग में भी हम भाई " बवाल " और  श्री अंशलाल पंद्रे जी की संगीत प्रस्तुतियाँ सुनेंगे-देखेंगे....क्रमशः...

7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

पंडित रुद्र दत्त दुबे "करुण" और बवाल को सुन कर झूम गये...बवाल ने तो न जाने कितनी महफिलें याद दिला दीं...बहुत आभार आपका.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

पंडित रुद्र दत्त दुबे "करुण" और बवाल को सुनकर अच्छा लगा!

shikha varshney ने कहा…

पंडित रुद्र दत्त दुबे "करुण" और बवाल को सुनकर अच्छा लगा.बहुत आभार आपका

vandana gupta ने कहा…

bahut badhiya.

समयचक्र ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति . भाई बबाल जी का यह गीत सुनकर फिर से यादे तरोताजा हो उठी....

"अर्श" ने कहा…

बवाल भाई साहब को सुना नहीं था , मगर हाँ जनता था के वो संगीत के प्रेमी हैं...
आज आपके द्वारा यह बात भी पूरी हो गयी ... खूब रंग जमे हैं... बहुत बहुत बधाई आप सभी को ..

अर्श

बवाल ने कहा…

अरे यह कौन फ़टा-बाँस आवाज़ में प्यार के बंधन तोड़ रहा था जी ? गा रहा था कि चिल्ला रहा था ? हा हा।
बहुत उम्दा रिकार्डिंग है सर। रुद्र जी का गाना बहुत सुन्दर लगा।
अभी पुणे में हैं सो ज़रा देर से देख पाए यह पोस्ट। क्षमा करें।
बहुत बहुत आभार इस पोस्ट में हमें स्थान देने के लिए।