जबलपुर ही नहीं देश प्रदेश में एक ऐसा नाम जिसे कलमकार बखूबी जानते हैं, उनके बहुआयामी कृतित्व से भली भाँति-परिचित हैं. एक बेहतरीन शायर, गीतकार, पत्रकार, एक जादुई प्रतिभायी होने साथ-साथ छोटे-बड़ों से समान वास्ता रखकर औरों से जुदा पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं. मैं बात कर रहा हूँ एक अप्रेल सन उन्नीस सौ पैंतालीस को जन्मे जनाब " साज़ जबलपुरी " जी की, जिनका हम छियासठवाँ जन्म दिवस "01-04-2010" को मना रहे हैं.
वैसे तो युवावस्था से ही इनकी साहित्य में गहरी रूचि थी. लेकिन इनका ये शौक धीरे-धीरे जिंदगी का हिस्सा बन गया. सन 1984 में गठित सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था वार्त्तिका के माध्यम से आपकी पहचान राष्ट्रीय क्षितिज पर दर्ज हुई. वर्तिका के निरंतर और नियमित ब्लॉग देखेंकार्यक्रम जहाँ लोगों को जोड़ने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं, वहीं वृहद स्तर पर आयोजित कवि सम्मेलन और राष्ट्रीय स्तर के सम्मान समारोह अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं.
आपकी लिखी अनेक पुस्तकें हमारे बीच हैं, लेकिन "मिजराब" ग़ज़ल संग्रह की बात ही अलग है. हर पृष्ठों पर बेहतरीन ग़ज़लों के साथ-साथ भावानुकूल कलात्मक रेखाचित्र भी मिजराब की विशेषता है. ऐसी बहुत ही कम पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं जिनमें दोहरी कलात्मकता उजागर हुई हो.
इसी संग्रह की ग़ज़ल " तनहा न अपने आपको पाईये जनाब " को राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध ग़ज़ल गायक श्री चंदन दास ने अपनी मधुर आवाज़ से ऐसा नवाजा कि ग़ज़ल शौकीनों की ये मन पसंद बन गयी है. चंदन दास जी ने इनकी ग़ज़ल " मैने मुँह को कफ़न में छुपा जब लिया " भी सर्वाधिक सुनी जाने वाली ग़ज़ल है. इसके अलावा और भी ग़ज़लें सुनी जा सकती हैं. आकाशवाणी के अनेक केंद्रों से इनकी गज़लें प्रसारित होती रहती है.
जनाब साज़ जबलपुरी वार्त्तिका के माध्यम से केवल साहित्यिक जागरण ही नहीं कर रहे हैं, आप जबलपुर और आसपास के क्षेत्रों में जाकर समाज सेवा का बीड़ा भी उठाए हुए हैं. ग़रीबों की किसी न किसी तरह से सेवा कर ये स्वयं तो आत्म संतुष्टि प्राप्त करते हैं और वर्तिका परिवार को भी प्रेरित करते हैं .
ऐसे इंसान के जन्मदिवस पर पर हम उन्हें अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ देते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें स्वस्थ्य, यशस्वी और शतायु बनाए.
इनके ये शेर देखें :-
जो भी चाहे खरीद ले मुझको
मेरी कीमत फकत मोहब्बत है.
मुझे यकीन है वो दिन है मेरी मुट्ठी में
जब इस जमाने को खुश्बू भरी फ़िज़ा दूँगा
ये चन्द साँसें, ये दिन रात, माह और बरस
ये मेरे उम्र की मीआद हो नहीं सकती
बात साज़ साहब की हो और ग़ज़ल की बात न हो ये उचित नहीं होगा, इसलिए हम भाई साज़ जबलपुरी की ही ग़ज़ल " मैंने मुँह को कफ़न में छुपा जब लिया " जिसे ग़ज़ल गायक चंदन दास जी ने मधुर स्वर दिए हैं, आपको सुनवाते हैं ------
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प्रस्तुति :-
- विजय तिवारी " किसलय "
10 टिप्पणियां:
भाई साज़ जबलपुरी जी को रुबरु सुनने का सौभाग्य आपके जन्म दिवस पर पिछले वर्ष प्राप्त हुआ था.
उन्हें जन्म दिन की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.
जो भी चाहे खरीद ले मुझको
मेरी कीमत फकत मोहब्बत है.
वाह वाह्……………………।एक ही शेर ने कमाल कर दिया तो बाकी के अगर पढ लिये जाये तो क्या बात हो………………।
साज़ जबलपुरी जी के जन्म दिन की बहुत बधाई और आपका शुक्रिया।
साज जबलपुरी जी को बहुत बधाई और ढेरो असीम शुभकामनाये ...
साज़ जी का लिखा हुआ ग़ज़ल "तनहा न अपने आप को अब पाइए जनाब" जिसे चन्दन दास जी की आवाज़ से स्वरबद्ध किया गया था, मुझे बहुत पसंद है और अपने कालेज के वक़्त में मैंने इस ग़ज़ल को गाया था... इसमें मुझे प्रदेश स्तर पर दूसरा इनाम भी मिला है...
साज़ जी की अन्य रचनाएं भी मुझे बेहद पसंद हैं... मुझे भी कवितायेँ व ग़ज़ल लिखने का बेहद शौक है... मैं इनकी रचनाएं पढ़कर प्रेरणा लेता हूँ... साज़ जी को बेहद बेहद धन्यवाद और जन्मदिन की ढेर सारी बधाइयाँ...
शुभ भाव
"राम कृष्ण गौतम"
saaz ji ko badhai ,saath hi unse milwaane ke liye shukriya ,main inse anjaan rahi
जो भी चाहे खरीद ले मुझको
मेरी कीमत फकत मोहब्बत है
waah kya hai .
जो भी चाहे खरीद ले मुझको
मेरी कीमत फकत मोहब्बत है.
बहुत खूब ....!!
साज़ जी और शशि जी को शुभ कामनायें
हमारी तरफ़ से भी साज़ बाबा को बहुत बहुत बधाई और आपका बहुत बहुत आभार डॉ. साहब।
उस्ताद शायर साज जबलपुरी जी की मैंने मुंह में कफ़न मुझे अति प्रिय है आपसे मिलना मेरा सौभाग्य रहा है।
आप हम जबलपुर वालों की शान हैं---सादर नमन
।।कदम जबलपुरी।।
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