बुधवार, 20 जनवरी 2010

दोहा श्रृंखला (दोहा क्रमांक ८०)

संघर्षों के नीर में,
बहती जीवन नाव।

पार उसी की लगे जो,
बढ़ते परख बहाव॥

- विजय तिवारी " किसलय "

5 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बढिया श्रृंखला. अतिसुन्दर.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया!!

समय चक्र ने कहा…

अतिसुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ज्ञानदायिनी मातु का जो करते हैं ध्यान!
माता उनके हृदय में भर देती हैं ज्ञान!!

gyaneshwaari singh ने कहा…

क्या बात है बहुत सही लिखा है बिना परख किया गया काम बेकार होता है