सोमवार, 18 जनवरी 2010

दोहा श्रृंखला (दोहा क्रमांक ७९)

मन अशांत, छूटें स्वजन,
अंखियन बीते रैन
दौलत वह किस काम की,
जो न दे सुख चैन
- विजय तिवारी "किसलय"

7 टिप्‍पणियां:

shama ने कहा…

मन अशांत, छूटें स्वजन,
अंखियन बीते रैन
दौलत वह किस काम की,
जो न दे सुख चैन
Waqayi kitna saty hai yah!

shikha varshney ने कहा…

वाह! क्या बात कह दी आपने जीवन का सत्य, जो अगर कोई समझ ले तो तर जाये

संगीता पुरी ने कहा…

सटीक लिखा .. बधाई !!

vandana gupta ने कहा…

waah waah.........bilkul sahi baat kahi

समयचक्र ने कहा…

bahut sahi sateek doha. abhaar

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

अरे वाह क्या बात है किसलय जी. एक ही दोहे में सब कह दिया. बधाई.

Urmi ने कहा…

आपने चंद पंक्तियों में जीवन की सच्चाई को बखूबी प्रस्तुत किया है! बहुत खूब!