शनिवार, 9 जनवरी 2010

छायाकार श्री रजनीकान्त यादव मानवतावादी और आधुनिक संवेदनाओं से भरपूर व्यक्तित्व.

दिनांक ९ जनवरी २०१० को जबलपुर के रानी दुर्गावती संग्रहालय में विख्यात छायाकार

(श्री रजनीकांत यादव)

श्री रजनीकांत यादव की "नर्मदा घाटी संस्कृति छायाचित्र प्रदेशिनी" के उदघाटन के साथ ही सम्बंधित व्याख्यान का भी आयोजन हुआ. अपने व्याख्यान में श्री यादव ने बताया की दुनिया भर में पिछले ७००० वर्ष में विकसित हुई प्रकृति पर आधारित जीवन शैलियों में नर्मदा घाटी की संस्कृति आज भी अपने स्वाभाविक रूप में देखी जा सकती है. उन्होंने नवीन तकनीकियों के दुरूपयोग और ऐसी विकास प्रक्रिया पर चिंता जाहिर की जिस से आम आदमी को राहत और फायदा न मिले. उन्होंने आगे बताया कि बड़े बड़े बांधों से सिंचाई और विद्युत उत्पादन में हुई वृद्धि से आज तक न ही अनाज सस्ता हुआ और न ही विद्युत ही सस्ती मिली . राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने छाया चित्रों की प्रदर्शनी, डाक्यूमेंट्री फिल्मों और समाचार पत्रों के माध्यम से अपनी पहचान स्थापित कर चुके श्री रजनीकांत यादव ने लोक संस्कृति और बैगा- आदिवासियों पर भी काम किया है.
इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में अंतर राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त साहित्यकार श्री ज्ञानरंजन जी ने श्री यादव को मानवतावादी और आधुनिक संवेदनाओं से भरपूर व्यक्तित्व की संज्ञा दी. उन्होंने कहा कि जब श्री यादव की किताबें खण्डों में प्रकाशित होंगी तब लोग ग्राम्यांचल, आदिवासियों सहित नर्मदा तटीय संस्कृति-परम्पराओं से अवगत होंगे


कार्यक्रम में अमृत लाल वेगड़, डॉ. कृष्णकांत चतुर्वेदी, हनुमान वर्मा, श्याम कटारे, कामता सागर, रामशंकर मिश्र, ओंकार ठाकुर, रमेश सैनी, डॉ. विजय तिवारी "किसलय", सूरज राय सूरज, सुधीर पाण्डेय, अरुण पाण्डेय, बसंत काशीकर, शक्ति प्रजापति, सुशांत दुबे, सच्चिदानंद शेकटकर आदि नगर के गण्यमान लोग उपस्थित थे। प्रगतिशील लेखक संघ के इस आयोजन में श्री राजेन्द्र दानी , श्री अरुण यादव और श्री पंकज स्वामी का विशेष सहयोग रहा.
- विजय तिवारी " किसलय "

3 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

रजनीकांत जी यादव के व्यक्तिव और कृतित्व के बारे में विस्तृत सरगार्वित जानकारी देने के लिए आभार .

Urmi ने कहा…

आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति की शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया पोस्ट!

SHAKTI PRAJAPATI ने कहा…

bahut shandar hai sir,umeed hai age bhi aur bahut kuch seekhne ko milega.