मंगलवार, 30 जून 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र. ६६]

वर्षा करती धरा से,
जैसे ही अनुबंध॥
शुभारम्भ की घोषणा ,
करती सौंधी गंध॥
- विजय तिवारी ' किसलय '

17 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

अहा!! इसी सौंधी गंध को तो लोग तड़प गये. बेहतरीन दोहा!

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

वाह!!!!बहुत बढिया।

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

aaj hamare city em bhi gandh mili

समय चक्र ने कहा…

अहा आज से इस सौधी गंध की खुशबू मिलने लगी है . बहुत ही मनभावन दोहा है .
कभी समयचक्र और निरंतर पर भी अपनी खुशबू बिखेरने का कष्ट करे.

महेंद्र मिश्र
जबलपुर.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

हम तो प्रतिदिन ही इस गन्ध को अनुभव कर रहे हैं।

प्रकाश गोविंद ने कहा…

इसी सौंधी गंध को महसूस करने के लिए तो
दिल बेचैन था !

शुभकामनाएं !

आज की आवाज

shikha varshney ने कहा…

wah sach main sondhi gandh mahsus ho rahi hai....

sandhyagupta ने कहा…

वर्षा करती धरा से,
जैसे ही अनुबंध॥
शुभारम्भ की घोषणा ,
करती सौंधी गंध॥

Samay se vartalap karti rachna.Badhai.

Prem Farukhabadi ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Prem Farukhabadi ने कहा…

Vijay saheb,
samayaanukool doha sarahneey hai.vartmaan dharatal kii aapki pakad bahut achchhi hai. kaabil e tareef hai.saahity kii khushboo ke darshan bhi ho rahe hain dohe mein. dil se badhaai!!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

इस सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

विजय जी,

सौंधी गंध महसूस होती है। बहुत ही सुन्दर, सार्थक और कसी हुई अभिव्यक्ती।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

Girish Kumar Billore ने कहा…

Ati uttam sir ji

hem pandey ने कहा…

एक और सुन्दर दोहा.

बवाल ने कहा…

किसलय साहब,
आपने मातृभूमि की गंध को दोहे में पिरोकर तो दिल ही जी लिया जी। बहुत लाजवाब ।
नम्रता की विजय को हम किसलय साहब की विजय भी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी शायद।
बहुत दिन आप सबसे दूर रहा इसके लिए मुआफ़ी की दरकार है।
आपका अपना
---बवाल

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

भाई जी ,अभिवादन!

इन दो पंक्तियों में पूरी वर्षा ऋतु सिमट आई है .............
शुभकामनायें ........

vijay kumar sappatti ने कहा…

just amazing , kya khoob likha hai mere dost , padhkar jhoom gaya ji , bus badhai hi badhai, varsha ritu ka aanand hi kuch aur hai ji


regards

vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com