मंगलवार, 23 जून 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र. ६५]

सद्य-प्रस्फुटित पुष्प का,
भ्रमर करें रसपान .
प्रेम-समर्पण का बना,
जैसे सृष्टि-विधान ..

- विजय तिवारी " किसलय "

6 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

बहुत बढ़िया दोहा .

"अर्श" ने कहा…

PURI SHRISHTI KO APANE IS CHHOTE SE DOHE ME SAMAAHIT KAR DIYAA HAI BAHOT KHUB BAAT KAHI HAI AAPNE DHERO BADHAAYEE SHAIB...


ARSH

Udan Tashtari ने कहा…

अति सुन्दर!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर किसलय जी।
आपने तो लोटे में समन्दर भर दिया।

shyam gupta ने कहा…

दोहा तो होता ही है गागर में सागर वाला छन्द ।

--भ्रमर का रसपान प्रेम समर्पण का अनुपूरक भाव नहीं । भाव दोष ?

बेनामी ने कहा…

ji bahut aacha pryas .


surabhi