गरमी में व्याकुल सभी, धरा हुई बेनूर
पर,श्रम करने धूप में, श्रमिक सदा मजबूर
रवि किरणें जब धरा पर,उगलें चहुँदिश आग
ठाँव बनें पशु, खगों के, झाड़, पेड़, वन-बाग़
जेठ मास में दोपहर, हो जाती सुनसान
तृण, तरु, झाडी, सूखते, वन होते वीरान
पर,श्रम करने धूप में, श्रमिक सदा मजबूर
रवि किरणें जब धरा पर,उगलें चहुँदिश आग
ठाँव बनें पशु, खगों के, झाड़, पेड़, वन-बाग़
जेठ मास में दोपहर, हो जाती सुनसान
तृण, तरु, झाडी, सूखते, वन होते वीरान
दिन भर लू-लपटें चलें, दूभर होती रैन
साधनहीन गरीबजन, पायें कैसे चैन
गरमी के संत्रास से, पीड़ित हो इंसान
शीतल छाया ढूँढता, जैसे पेड़, मकान
गरमी गर आती नहीं, मेघ बनाता कौन?
इस छोटे से प्रश्न पर, क्यों होते हो मौन?
-विजय तिवारी "किसलय"
उपरोक्त दोहों को मेरी आवाज़ में सुनने के लिए
साधनहीन गरीबजन, पायें कैसे चैन
गरमी के संत्रास से, पीड़ित हो इंसान
शीतल छाया ढूँढता, जैसे पेड़, मकान
गरमी गर आती नहीं, मेघ बनाता कौन?
इस छोटे से प्रश्न पर, क्यों होते हो मौन?
-विजय तिवारी "किसलय"
उपरोक्त दोहों को मेरी आवाज़ में सुनने के लिए
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9 टिप्पणियां:
garmi ki trasdi ka bahut sundar varnan kiya hai.
kya khubsurati se kahi hai aapne baat ko... bahot khub...
arsh
बहुत बढ़िया दोहे.
गरमी में व्याकुल सभी, धरा हुई बेनूर
पर,श्रम करने धूप में, श्रमिक सदा मजबूर
-सभी दोहे एक से बढ़ कर एक- आनन्द आ गया. बधई.
skaratmkta jeevan ko jeevant bana deti hai .
bhut ache dohe.
bdhai.
मेघ घिरे आकाश में, ठण्डी चलत बयार।
तपन शान्त सब हो गयी,पड़ने लगी फुहार।।
६४ वां कब भाई रोज देखता हूँ ब्लॉग
बैरंग लौट जाता हूँ उदासी के साथ
Bahut hi badhiya dohe hain...aap ki awaaz mein sunNa aur bhi achcha lga.
गरमी के संत्रास से, पीड़ित हो इंसान
शीतल छाया ढूँढता, जैसे पेड़, मकान
'गरमी गर आती नहीं, मेघ बनाता कौन?
इस छोटे से प्रश्न पर, क्यों होते हो मौन?'
Waah! WAAH!!!!!
bahut umda!
Garami ke mausam ka khuub badhiya chitran kiya hai.
भई विजय जी, मज़दूर धन्धा नहीं करेगा तो खायेगा क्या , ये कौन सी मज़बूरी हुई ?
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