प्रतिदिन उठते ही हो जाती है
यंत्रवत गृह कामों में व्यस्त।
कार्यालय की दूरी
समय की मजबूरी
बच्चों की तैयारी
ट्रेफिक की मारामारी।
भीगे वस्त्र और तन
धूप हो या ठिठुरन
हमेशा अड़चन।
ऑफिस में देर
घर में अबेर
ख़ुद परेशान
बच्चे हैरान
ऑफिस जाना
वापस आना।
सुबह का खाना
शाम को फिर से भोजन पाकाना
कई बार सोचा
ये इन्सान है
या मशीन .....
- विजय
4 टिप्पणियां:
WAAH BAHOT HI SAHI BAAT KAHI HAI AAPNE... AISA HI HOTA HOGAA HAALAAKI ABHI SHAADHI NAHI HUI MAGAR AISA HONAA TO TAY HAI ...
BADHAAYEE AAPKO SAHIB
ARSH
क्या बात है नौकरी वाली मशीनी महिला ? नौकरी के साथ जिन्हें हर दम सिर्फ अपने परिवार की ही सुध रहती है .
bade sahi dhang se aapne ek naukri pesha aurat ke dard ko ukera hai.
machin hi to bana diya hai aurat ko aaj kal ki life ne...magar usne khud bhi isse sweekar kiya hai
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