मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

शताब्दी के सम्पादक श्री ओंकार ठाकुर ७५ के हुए .

सन १९५१ के माडेलियन (मॉडल स्कूल से उत्तीर्ण छात्र ) एवं १९५७ के एम. एस-सी.(बाटनी) श्री ओंकार ठाकुर का जन्म १५ अप्रेल १९३३  में जबलपुर, मध्य प्रदेश में हुआ. जबलपुर को ही कर्मस्थली मान कर जीवन भर  साहित्य साधनारत रहे हैं.जीवन के ७९ वर्ष विगत १५ अप्रेल को पूरे करने वाले  श्री ठाकुर जी अंतिम समय तक  संयमित जीवन जी रहे। सन १९४८ से प्रारंभ लेखन अंतिम समय तक  अबाध गति से चलता  रहा. साहित्य शिखर की ओर बढ़ते हुए सन १९६५ की फरवरी में अपनी स्वयं की पत्रिका शताब्दी निकालना प्रारंभ किया जो जून १९८२ तक लगातार प्रकाशित होती रही. राष्ट्रीय स्तर के साहित्यकारों की रचनाये प्रकाशित करने वाली मध्य प्रदेश की "शताब्दी" का प्रकाशन अवधि में अहम् स्थान था. साहित्य की समस्त विधाओं में पारंगत, साहित्यकार, पत्रकार, सम्पादक, कवि, उपन्यासकार, हिदी-अंगरेजी-विज्ञान के व्याख्याता एवं अनुवादक श्री ओंकार ठाकुर की रचनाएँ देश की अधिकाँश चुनिन्दा पत्रिकाओं और पत्रों में निरंतर  प्रकाशित होती  रहीं हैं. देश के जाने माने साहित्यकारों का सानिध्य प्राप्त करने वाले श्री ठाकुर सदैव  सहजता, सरलता,सादगी, सच्चाई, निश्छलता, गंभीरता एवं सहन्शीलता के अनुगामी रहे .
विगत १५  अप्रेल सन २०१२ को  अपने जीवन के यशस्वी ७९  वर्ष पूर्ण कर २६ अप्रेल २०१२ को अपरान्ह ३.१० बजे अल्प अस्वस्थता के चलते सांसारिक माया जाल से मुक्त हो  स्वर्ग सिधार गए ।
विनम्र श्रद्धांजलि  सहित हम उनकी आत्म शान्ति  हेतु  इश्वर से प्राथना करते हैं.

(श्री ओंकार ठाकुर के संपादकत्व में प्रकाशित

साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं कला को समर्पित

पत्रिका " शताब्दी" का प्रवेशांक फरवरी- १९६५

तथा अंतिम अंक जून १९८२ के आवरण पृष्ठ । )


(१९७२ में प्रकाशित श्री ओंकार ठाकुर द्बारा ठग जीवन पर लिखे
गए एक सच्चे उपन्यास " फिरंगिया " का आवरण चित्र ।)

(सन १९६८ में श्री ओंकार ठाकुर अपनी माँ श्रीमती लक्ष्मी देवी के साथ।)

(सन १९५१ के श्री ओंकार ठाकुर )

- विजय तिवारी " किसलय "

6 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

जीवन के यशस्वी ७५ वर्ष पूर्ण करने पर दादा ओंकार ठाकुर जी को ढेरो शुभकामना और बधाई.

गुलुश ने कहा…

आदरणीय किसलय जी,

आप हिंदी साहित्य संगम के माध्यम से जबलपुर के साहित्यकारों के सम्बन्ध में विभिन्न अवसरों पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करते हैं। इसके लिए आप को साधूवाद। श्री ओंकार ठाकुर ने जिस प्रकार विपरीत परिस्थितियों में 'शताब्दी' प्रकाशित करते रहे, वह साहित्यिक क्षेत्र में बड़ी बात है। दुख इस बात का है कि आलोचकों की नजरों में ओंकार ठाकुर निरंतर ही उपेक्षित रहे हैं।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

हार्दिक शुभ कामनाएं
आयोजन के लिए
आभार
पता होता तो एक
कोई बात नहीं
शेष अनवरत शुभ

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

"दुख इस बात का है कि आलोचकों की नजरों में ओंकार ठाकुर निरंतर ही उपेक्षित रहे हैं।"
गुलुश ने जो कहा उसके मायने बिलकुल स्पष्ट हैं . मैं सहमत हूँ मेरे कथन और अवधारणा
जिसे कुछ लोग मूर्खता/कुछ लोग बचपना कुछेक विद्रोह मानतें हैं

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

हिंदी साहित्य संगम के माध्यम से जबलपुर के साहित्यकारों के सम्बन्ध में विभिन्न अवसरों पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करने के लिए ढेरो शुभकामना और बधाई.

SHAKTI PRAJAPATI ने कहा…

KYA BAAT HAI,HINDI TYPING BHOOL CHUKA HAI,ISLIYE EGLISH LETTERS MAIN HI SHUBKAMNAYEIN.