बुधवार, 4 मार्च 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र ३२]

प्रियतम के आगमन की
खबर न देता काग
बेचैनी हर पल बढे
आने को है फाग

- विजय

8 टिप्‍पणियां:

Prem Farukhabadi ने कहा…

achchha laga doha.badhaai ho.

समयचक्र ने कहा…

बहुत बढ़िया जो मन को मोहे. वाह विजय जी बढ़ी बढ़िया पंक्तियाँ लगी . धन्यवाद.

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर..

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत ही सुन्दर..

vandana gupta ने कहा…

waah waah ............bahut khoob.

एक स्वतन्त्र नागरिक ने कहा…

प्रियतम के आगमन की
यद्यपि इसमें १३ मात्रा होने से मात्रिक दोष नहीं है परन्तु इसे बोलने में गति और यति में बाधा आती है. कृपया गण को देख ले.

Science Bloggers Association ने कहा…

वाह, क्‍या बात है।

बेनामी ने कहा…

फाग का रंग तो मौसम में कई दिनों से घुला हुआ है। बेहतरीन रचना। बधाई।