शुक्रवार, 27 मार्च 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र ३५]

जलजीरा,

रस ईख का,

लस्सी भरे

गिलास ...

गरमी में

अमृत लगें,

इनसे बुझती

प्यास .......

- विजय तिवारी ' किसलय '

7 टिप्‍पणियां:

Archana Chaoji ने कहा…

बहुत सुन्दर!!!

इनसे बुझती प्यास,
ये कवि "किसलय"समझावें,
कोला-पेप्सी इनके आगे जाके,
पानी भर लावे !!!!!

ghughutibasuti ने कहा…

पर जब तक ना हो स्वच्छता इनको पीने से मन घबराए।
सोच पीलिया, टाइफॉइड और हैजे का हम प्यासे रह जाएँ ।
घुघूती बासूती

श्यामल सुमन ने कहा…

दोहा नित ऐसा लिखें हमको है विश्वास।
प्यासे जो साहित्य के बुझेगी उनकी प्यास।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsoman@gmail.com

संजय तिवारी ने कहा…

बहुत सुन्दर

गर्मी मे इनसे ही प्यास बुझती हे

vandana gupta ने कहा…

kahan se soch kar laye hain,bilkul hat kar likh diya is bar to.

Girish Kumar Billore ने कहा…

कितना माधुर्य है....दोहे में
कल ही तनखा साब वाले चौक पे अनुभव हुआ
मेरा अनुभव आपने लिखा कैसे ?

hempandey ने कहा…

आपने तो प्यास जगा दी |