बुधवार, 25 मार्च 2009

क्या शीर्षस्थ नेता योग्य प्रत्याशी चुनने का माद्दा रखते हैं ?

राष्ट्र की उन्नति, राष्ट्र का विकास, राष्ट्र का नव निर्माण देश की ज़िम्मेदार जनता द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधियों एवं शासन की नीतियों के सफल क्रियान्वयन से ही संभव होता है. यदि देश के जनप्रतिनिधि ईमानदार, देशभक्त एवं लगनशील होंगे तो इसमें दो मत नहीं कि राष्ट्र विकास की धारा तीव्र से तीव्रतम होती जाएगी और यदि हमारे द्वारा चुने गये प्रतिनिधि ही स्वार्थी, पदलोलुप और भ्रष्टाचारी होंगे तो राष्ट्र के गर्त में गिरने से कोई नहीं बचा पाएगा. यहाँ यह कहना पड़ रहा है कि देर ज़रूर होती है अंधेर नहीं.
हमारे राष्ट्र भारत की विशालता से सभी परिचित हैं. चीन के बाद आबादी में हमारे राष्ट्र ने इस धरा को सबसे अधिक बोझ से दबाया है. देश बड़ा है तो जनसंख्या भी बड़ी है. जनप्रतिनिधि भी ज़्यादा होते हैं. आधे से अधिक लोगों को भारत की भौगोलिक संरचना और सीमा की भी जानकारी नहीं होगी. एक ही देश के नागरिक होने पर भी देश के दूसरे छोर के लोगों की भाषा नहीं जानते, उनसे सामान्य संवाद नहीं कर पाते हम तो कहेंगे कि संवाद हीनता की स्थिति भाषाई आधार पर बाँटे गये प्रांतों के कारण निर्मित हुई है. गुजरात का नागरिक असम और काश्मीर का नागरिक तमिल जानने कि कोशिश ही नहीं करता. सबकी अपनी ढपली अपना राग है. कोई क्षेत्रीयता और राज्य से ऊपर उठ कर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में चिंतन करने का सोचता ही नहीं है.
राष्ट्र के प्रतिनिधि, मंत्री तक राष्ट्रीय भावना को दर किनार रख कर अपनी जीत सुनिश्चित करने हेतु क्षेत्रीयता और जातिवाद पर ही ज़ोर देते देखे जाते हैं. राजनैतिक दलों में भी स्वार्थी भावना किसी से छिपी नहीं है अपने दल की जीत हेतु सामने वाले दल की हर बात का विरोध करना अपना दायित्व समझ बैठे हैं, भले ही वह बात राष्ट्र हित का अहम हिस्सा ही क्यों हो.
आज इन विचारधाराओं में तब्दीली भले ही चुनौती हो लेकिन बदलना बहुत ज़रूरी हो गया है अब राष्ट्र में ऐसा महसूस किया जाने लगा है कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अन्य विकसित राष्ट्रों की बराबरी तक पहुँचने के लिए कुछ ऐसे प्रयास/प्रयोग किए जाएँ जिनकी सही मायने में राष्ट्र को ज़रूरत है. इनमें राजनैतिक दलों द्वारा चुनाव प्रक्रिया के चलते योग्य (यथार्थ में) प्रत्याशियों का चयन भी महत्व्पूर्ण कड़ी है.
चुनाव सिर पर आते ही सभी राजनैतिक दल अपनी प्रत्याशी चयन प्रक्रिया में व्यस्त हो जाते हैं. राजधानी में बैठे शीर्षस्थ नेता प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की राजनैतिक परिस्थितियों का आकलन कर ऐसे प्रत्याशी का ही चयन करते हैं जो जीत दिला सके. प्रिंट तथा एलेक्ट्रॉनिक मीडिया, कृत्रिम लोकप्रियता, झूठे विज्ञापन / पत्राचार एवं तरह तरह की वज़नदारी दिखाकर आज अधिकांश अयोग्य भी अपनी टिकिट पक्की करने में सफल हो जाते हैं. वहीं दूसरी ओर राष्ट्र और राजनैतिक दलों को समर्पित सच्चे जनसेवियों की टिकिट कट जाती है. शीर्षस्थ नेता साम-दाम-दंड-भेद के चक्रव्यूह में फस कर, झूठी, स्वार्थपरक जानकारियों पर विश्वास कर लेते हैं. आर्थिक मजबूती की चमक-दमक के आगे नेतृत्व को भी झुकना पड़ता है जो हमारे लोकतंत्र के लिए घातक है.
उचित तो यह है कि राष्ट्रहित एवं दलीय मापदंड के अनुरूप ही प्रत्याशी की दावेदारी का आकलन किया जाना चाहिए. सर्वप्रथम प्रत्याशी का स्थानीय होना अतिआवश्यक है क्योंकि वह ही शतप्रतिशत स्थानीय बातों की जानकारी से अवगत रहता है. बाहर से थोपे गये प्रत्याशी को अधिकांश लोग नापसंद करते हैं. दावेदार द्वारा जनहित में किए गये कार्यों / प्रयासों का सप्रमाणिक ब्यौरा देखा जाना चाहिए. जनमानस में उसकी छवि एक सुलभ, समाजसेवी एवं जनप्रिय कार्यकर्ता की होना चाहिए. टिकिट के दावेदार राष्ट्र एवं क्षेत्र के विकास हेतु कितना समर्पित है, इसका भी पता चयनकर्ताओं को होना चाहिए. ऐसा भी देखा गया है कि उम्मीदवार अपने प्रभाव, अपनी धन-दौलत, सही-ग़लत प्रभावी जनप्रतिनिधियों के अनुमोदन एवं गुटीय आधार का फ़ायदा उठाकर भी अपनी नीति में सफल हो जाते हैं. जातिगत और क्षेत्रीय मुद्दे भी अहम भूमिका का निर्वहन करते हैं.यदि उचित प्रक्रिया द्वारा प्रत्याशियों का चयन हो तो निश्चित ही देश और समाज की प्रगति में चार चाँद लग सकते हैं, भले ही प्रत्याशी किसी भी राजनैतिक दल /गुट से संबद्ध क्यों हो.......
लेकिन
मुझे लगता है कि आज हमारे देश में ऐसे शीर्षस्थ नेताओं कि कमी है जो योग्य प्रत्याशी चुनने का माद्दा रखते हों ?

- विजय तिवारी " किसलय "

3 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

vijay ji

aapne sahi farmaya.itni satik baat ki hai jo sochne yogya hai.aaj aam insan to yahi chahta hai magar uski is bhawna ko kaun samajhta hai.
mudda sahi uthaya hai ---------vicharniya hai...........dekhte hain kitne log is par vichar karte hain.
aaj jab sheersth neta hi thik nhi hain to pratyashi achcha hoga iski to ummeed hi nhi ki jani chahiye.

iske liye to prayas jaroori hai jiski himmat aapne ki hai.agar desh ka har nagrik aisa hi sochne lage to desh unnati aur pragati ki raah par hamesha chalta rahe .

vyaktigat swarth ko chodna hoga tabhi hamein yogya sarkar mil sakegi magar aaj wo sab kahan hai?

sarita argarey ने कहा…

विजय जी,
नेताओं पर दबाव डालने के लिए मतदाताओं को ही पहल करना होगी । राजनीतिक दल खुद होकर कभी बदलाव नहीं चाहेंगे ,उन्हें मजबूर किया जा सकता है वोट नहीं करने का भय दिखाकर । चुनाव आयोग ने हमें मौका दिया है कि हम मतदान केन्द्र पर अपने मत का उपयोग नहीं करने की सूचना दर्ज़ करायें । मेरा मानना है कि हमें इस व्यवस्था का बड़े पैमाने पर फ़ायदा उठाना चाहिए । आप से गुज़ारिश है कि इस मुहिम में लोगों को शामिल करें ।

Alpana Verma ने कहा…

दावेदार द्वारा जनहित में किए गये कार्यों / प्रयासों का सप्रमाणिक ब्यौरा देखा जाना चाहिए. जनमानस में उसकी छवि एक सुलभ, समाजसेवी एवं जनप्रिय कार्यकर्ता की होना चाहिए.
is baat se poori tarah sahmat hun.

aaj kal samaaj sevakon ko ticket nahin milta...Jo sthaniy bhi nahin hain unhen ticket mil jata hai..

ab ye abhineta hon ya cricketar...bas un ke naam ka fayda uthane ke liye party istmaal karti hai..

dal gat rajniti se uppar uthane ki jarurat hai..magar kisey kahen??sab ki apni dhafali apna raag hai!