शुक्रवार, 6 मार्च 2009

रंग-अबीर-उमंगें-खुशियाँ लेकर आती फाग

आते ही ऋतुराज पञ्चमीं, झाड़ गड़ाते अंडे का
मिलकर बच्चे ढेर लगाते, झाड़ी, लकड़ी, कंडे का
द्वेष जलाती होली के दिन, सच्चाई की आग
रंग-अबीर-उमंगें-खुशियाँ लेकर आती फाग

इन्द्र धनुष के रंगों जैसी, छटा बिखेरे राहों में
भंग दिखाती जादू अपना, मस्ती भरी निगाहों में
बरसाने की होली अब भी, बरसाती अनुराग
रंग-अबीर-उमंगें-खुशियाँ लेकर आती फाग

कटती पकी फसल खेतों की, गंज लगे खलिहानों में
नए धान्य के घर आने पर, छाये खुशी किसानों में
आम-बौर, महुआ,सरसों से, महकें गलियाँ, बाग़
रंग-अबीर-उमंगें-खुशियाँ लेकर आती फाग

बासंती फूलों की वेणी, खिले घनेरे बालों में
प्रिय की मली गुलाल प्रिया के, फबती गोरे गालों में
सजनी के माथे टेसूरंग, बनता अमर सुहाग
रंग-अबीर-उमंगें-खुशियाँ लेकर आती फाग

भौरों की मदमाती गुंजन, कोयल की प्यारी बोली
करे धरा श्रृंगार सलोना, सजे दुल्हन की ज्यों डोली
ऐसे बौराए मौसम में, जलते प्रणय चिराग
रंग-अबीर-उमंगें-खुशियाँ लेकर आती फाग

- विजय तिवारी " किसलय "

8 टिप्‍पणियां:

बवाल ने कहा…

क्या बात है किसलय साहब ! ग़ज़ब कर दिया जी। बहुत बेह्तरीन कविता, दिल को रंगों से सराबोर कर देने वाली।

आवारा प्रेमी ने कहा…

इन्द्र धनुष के रंगों जैसी, छटा बिखेरे राहों में
भंग दिखाती जादू अपना, मस्ती भरी निगाहों में
वाह.कबीर सर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्र सर्रर्रर्रर्रर्र

Hamara Ratlam ने कहा…

रंगों से सराबोर कर देने वाली कविता

हमारी प्रतिज्ञाः बिना लकडी जलाये बिना पानी वाली होली खेलने की।
http://hamararatlam.blogspot.com/2009/03/promise-holi-without-water.html

vandana gupta ने कहा…

holi ke sabhi rang undel diye hain..........bahut hi bhavbhini kavita.

Unknown ने कहा…

aapki rachana pasad aayi. fag ka dradya samane aa gaya.

ise ratlam, jhabua(M.P.), Dahod(gujarat) se prakashit Dainik Prasaran me prakashit karane ja rahaan hoon.

kripaya, aap apana postal address send karen, taki aapko prati post ki ja saken.

pan_vya@yahoo.co.in

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

भाई जी!
अभिवादन,
बहुत सहजता से वसंत के संग होली का समन्वय और सौन्दर्य प्रस्तुत करती है,आपकी यह कविता .
फाग के समस्त रंग उपस्थित हैं. ......
मेरी शुभकामनाएं ..........

Alpana Verma ने कहा…

भौरों की मदमाती गुंजन, कोयल की प्यारी बोली
करे धरा श्रृंगार सलोना, सजे दुल्हन की ज्यों डोली
ऐसे बौराए मौसम में, जलते प्रणय चिराग
रंग-अबीर-उमंगें-खुशियाँ लेकर आती फाग

bahut hi sundar kavita Vijay ji,

holi ke sabhi rang samaaye hue..

rituraaj vasant ki mouj aur saath saath faag ki masti bhi ek sutr mein piro di ho jaise!

Holi ki dher sari shubhkamnayen!

Saaz Jabalpuri ने कहा…

kislay ji
कटती पकी फसल खेतों की, गंज लगे खलिहानों में
नए धान्य के घर आने पर, छाये खुशी किसानों में
आम-बौर, महुआ,सरसों से, महकें गलियाँ, बाग़
रंग-अबीर-उमंगें-खुशियाँ लेकर आती फाग
rachna man mohak hai.
achchha laga aap ke blog par aakar.bahut achchha likh rahe hain.badhaai ho.