बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

सोचो इस दुनिया में आकर,हमने क्या खोया क्या पाया

पैदा होते ही वर्षों तक,
घर वालों का बने खिलौना
बड़े प्यार से गए पुकारे,
राजा भैया, मुन्ना, छौना
जब-जब रोये या रूठे तो,
मीठी बातों ने बहलाया
सोचो इस दुनिया में आकर,
हमने क्या खोया क्या पाया

बालापन को खेल गँवाया,
विद्यालय जा शिक्षा पाई
आदर
,रीति,नीति,मर्यादा,
सीखी
सब, जिसने सिखलाई
पाकर अनुभव लगे समझने,
कौन हमारा, कौन पराया
सोचो इस
दुनिया में आकर,
हमने क्या खोया क्या पाया

मि
ली जो रोजी, बीबी-बच्चे,
बनी पहेली दुनियादारी
लगे छूटने धीरे-धीरे,
भाई-बहन, बाबा-महतारी
अंतस की बातें मानी,
स्वजनों
को जब तब ठुकराया
सोचो इस दुनिया में आकर,
हमने क्या खोया क्या पाया

ख़ुद में ही मशगूल रहे हम,
कभी बड़ों की सीख मानी
दुहरा
जब गई कहानी,
तब रिश्तों की कीमत जानी
एकाकी जीवन जी जी कर ,
अपने मन को नित भरमाया
सोचो इस दुनिया में आकर,
हमने क्या खोया क्या पाया

वय के अन्तिम छोर पहुँचकर,
मुडकर देखा तो क्या देखा
चार दिनों में नहीं बदलता,
हानि-लाभ, कर्मों का लेखा
जीवन का बस यही फलसफा,
वैसा फल जो पेड़ लगाया
-विजय तिवारी "किसलय "

8 टिप्‍पणियां:

"अर्श" ने कहा…

पुरी जीवन गाथा आपने कह डाली इस कविता में बहोत ही बढ़िया लिखा है आपने ... इसकी मात्राएँ भी सही है बेहद उम्दा लिखा है आपने ढेरो बधाई कुबूल करें ..

अर्श

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

jeevan ke saar se suvasit kavita ...........
sundar prashn ......kya khoya ? kya paaya ?

shubh kamanaayen

समयचक्र ने कहा…

जन्मदिन के इस अवसर पर मेरी और ब्लॉगर मंडली की और से ढेरो शुभकामनाये और बधाई . चिरायु हो और खूब अच्छा पढ़े और खूब अच्छा लिखे .

समयचक्र

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

आदरणीय बन्धु!
आपको जन्म-दिवस की हार्दिक मंगल कामनाएं ,आप चिरायु हों तथा आपकी लेखनी सदैव गतिमान रहे ."क्या खोया क्या पाया " विषय पर हो रही गोष्ठी में आये सभी सुधीजनों से अनुरोध है कि अग्रज तुल्य "किशलय" जी को अपना आशीष प्रदान करें .

आभार ......

Udan Tashtari ने कहा…

कल रात आपसे इस काव्यपाठ को सुना, अभी पढ़ा. आनन्द आ गया पूरा जीवन चक्र का ब्यौरा है. बहुत उम्दा. बधाई.

Prem Farukhabadi ने कहा…

Bahut khoob.Dil ko chhoo gayi apki kavita.

Prem Farukhabadi ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
Prem Farukhabadi ने कहा…
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