मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ

बचपन की प्यारी स्मृतियाँ, आँखें नम कर जातीं है.

गलती कर पहलू में तेरे, छिपना याद दिलातीं हैं॥

इन खट्टी-मीठी बातों की,कथा सुनाने आ जाओ।

ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ



तन से दूर भले हूँ लेकिन, मन से कभी रहा न दूर।

मुझे ख़बर है तनिक कष्ट भी,तुमको रहा नहीं मंजूर॥

अब तक बढे फासलों का तुम, अंत कराने आ जाओ।

ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ



घर से दूर बसा हूँ तब से, सोच तुम्हारी बदल गई।

यहाँ हमारी मजबूरी ने, रच दी दुनिया एक नई॥

लेकिन सुलह वक्त से कर अब, नेह जताने आ जाओ।

ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ



माँ तुमसे दूरी को लेकर, बात हमेशा चलती है।

गाँव में रहने की जिद भी, अक्सर मन को खलती है॥

मेरे जीवन में खुशियों के, दीप जलाने आ जाओ।

ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ



माना तेरी उम्मीदों पर, खरा नहीं मैं उतरा हूँ।

लेकिन तुमको कहाँ पता मैं,किस पीड़ा से गुजरा हूँ॥

हाथों का स्पर्शी-मरहम, मुझे लगाने आ जाओ।

ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ



मुझको जीवन देकर तुमने, अपना फ़र्ज़ निभाया है।

तेरी सेवा न कर अब तक, ख़ुद पर क़र्ज़ बढाया है॥

कैसे बनूँ कृतज्ञ तुम्हारा, राह बताने आ जाओ।

ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ




- विजय तिवारी "किसलय "

जबलपुर म प्र ( भारत ) इंडिया

मोबाइल :- ०९४२५३२५३५३.












2 टिप्‍पणियां:

Girish Kumar Billore ने कहा…

Bhav poorn

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

bhavon ka sudar chitran ...........

maan ko shabdon men kitanaa bhi bandho ,fir bhi kuchh choot jaata .poori nahin simat pati ,hamare shabd sankuchit ho jate hain ......

maan ka vistaar hi aisa hai ,usake aanchal men ham simat jaate hain ....
shubh kamnaayen