व्यंग्य विधा के जनक स्व श्री हरि शंकर परसाई के गृह नगर संस्कारधानी के नाम से विख्यात जबलपुर के व्यंग्य शिल्पी स्व डॉ श्री राम ठाकुर "दादा" का स्मरण आते ही एक सरल और सहज व्यक्तित्व कि छवि मानस पटल पर उभर आती है. मुझे विश्वास है कि उन्हें जानने वाला हर एक शख्स ऐसा ही सोचता होगा . व्यक्तित्व और कृतित्व के मिले जुले प्रतिफल ने ही उन्हें साहित्य के प्रतिष्ठित स्थान तक पहुँचाया है. मुझे भी उनकी नजदीकियों का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. उम्र में छोटे होने के बावजूद उन्होंने मुझे सदैव 'जी' के साथ ही संबोधित किया. उनके निवास पर घंटों साहित्यिक चर्चाएँ हुईं. वे मुझे सदैव लिखने , पढने हेतु प्रेरित किया करते थे . राष्ट्र स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में अपनी रचनायें भेजने हेतु संपर्क-सूत्र देते रहे. उनकी लघु कथाएँ और उनके जीवन परिचय को जब मैंने अपने ब्लॉग "हिन्दी साहित्य संगम" प्रकाशित किया तो वे बेहद खुश हुए और अपने सन्दर्भों को देखकर उन्होंने भी चाहा था कि उनका रचना संसार अन्तर-जाल के माध्यम से जन सामान्य तक पहुँचे. मैं यहाँ पर यदि पाठक मंच का उल्लेख न करुँ तो दादा कि चर्चा अधूरी ही रहेगी. पाठक मंच की मासिक गोष्ठियों को वे नियमित रखने के साथ-साथ बड़ी गंभीरता से संयोजित भी करते रहे और पाठक मंच जबलपुर को पूरे मध्य प्रदेश में विशेष स्थान दिलाने में सफल हुए. विभिन्न व्यस्तताओं के चलते मैं पाठक मंच की गोष्ठियों में ज्यादा पुस्तकों की समीक्षा तो नहीं कर पाया लेकिन उन्होंने मुझे सदैव मेरी योग्यता के अनुरूप ही पुस्तकें समीक्षार्थ दीं. इनकी समीक्षाओं को सराहना भी प्राप्त हुई.
पाठक मंच, कहानी मंच, अथवा संस्कारधानी के किसी भी साहित्यिक कार्यक्रम की मात्र सूचना ही उनके लिए पर्याप्त होती थी. डॉ दादा ने सभी कार्यक्रमों को महत्त्व दिया और उनमें सदैव अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई. वर्ष २००८ के म. प्र. विद्युत मंडल हिन्दी परिषद् के वार्षिक कार्यक्रम में भी उन्होंने सहजता से आथित्य स्वीकार कर अपनी अभिव्यक्ति से विद्युत परिवार को प्रभावित किया .
उनमें प्रेम और भाईचारे का सबसे बड़ा गुण विद्यमान था. वैमनस्यता, ईर्ष्या या विवाद जैसे अवगुणों से इनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था . सौजन्यतावश उनका मेरे घर पर आगमन मेरे लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं होता था. किसी नए प्रकाशन,प्रसारण अथवा किसी भी उपलब्धि पर उनकी बधाई और शुभ कामनाओं में कभी विलंब नहीं हुआ. ऐसी ही कुछ स्मृतियाँ और उनकी जीवन शैली सदैव हमारे दिलों में चिर स्थायी रहेगी.
- विजय तिवारी " किसलय" जबलपुर
7 टिप्पणियां:
सुन्दर पोस्ट। दादा की रचनायें पढ़वायें, नेट पर लायें।
भाई विजय जी
अपने दादा की यादे इस पोस्ट में माध्यम से फ़िर से तरोताजा कर दी . आभार
महेन्द्र मिश्र
जबलपुर.
nice post
भाई अनूप जी , मिश्रा जी एवं हर्ष पाण्डेय जी
सबको सादर अभिवंदन
दादा की रचनाओं को ब्लॉग पर जरूर लाने की कोशिश करूंगा
विजय
mera bhee shat shat naman
बेहतर काम कर रहे हैं आप बधाई.....
बहुत सुंदर.....डॉ श्री राम ठाकुर "दादा" के बारे में जानकर अच्छा लगा।
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