बुधवार, 28 जनवरी 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र २५]

ताली बजती है तभी

जब टकराते हाथ

दुःख पाते वे आदमी

जो भटकाते माथ
-किसलय

7 टिप्‍पणियां:

बवाल ने कहा…

ताली बजती है तभी
जब टकराते हाथ
दुःख पाते वे आदमी
जो भटकाते माथ
बहुत बढ़िया डा॓. साहब, क्या बात कही आपने।

समयचक्र ने कहा…

बहुत बढ़िया दोहा है . तली एक हाथ से बजाने का परिणाम देखे.
समयचक्र में
http://mahendra-mishra1.blogspot.com/2009/01/blog-post_26.html

संगीता पुरी ने कहा…

क्‍या खूब लिखा है....

Prem Farukhabadi ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Prem Farukhabadi ने कहा…

Vijay ji
Bahut badhiya doha likha hai . aapki taareef mein maine kuchh jod diya hai.

Taali bajti hai tabhi jab takrate hath.
dukh paate ve aadmi jo bhatkate math.
jo bhatkate math n milta unhen thikana.
har koi kahta firta hai unko deewana.
kahe vijay kaviray jindgi milkar sajti hai.
mazaa tabhi aata jab khulke tali bajti hai.

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

विजय जी
बहुत बढ़िया दोहा लिखा है. आपकी तारीफ़ में मैने कुछ जोड़ दिया है.
ताली बजती है तभी जब टकराते हाथ.
दुख पाते वे आदमी जो भटकते माथ.
जो भटकाते माथ न मिलता उन्हें ठिकाना.
कहते जग में आजकल उनको सभी दीवाना
कहें विजय कविराय जिंदगी मिलकर सजती
मित्र मज़ा आता सदा जब खुलकर ताली बजती

भाई प्रेम जी
अभिवन्दन
दोहा तो मैने लिखा था आपने उसे कुंडलियों के प्रारूप में परिवर्धित कर प्रतिक्रिया को नया स्वरूप प्रदान किया है.
आभार
-विजय

seema gupta ने कहा…

ताली बजती है तभी
जब टकराते हाथ
ताली बजती है तभी
जब टकराते हाथ
" एक हाथ से तली नही बजती एक सच है......यथार्थ शब्द.."

Regards