शनिवार, 27 दिसंबर 2008

दोहा श्रृंखला [ दोहा क्र. 13 ]

धन की करे न कामना ,
सदा लुटाये प्यार।
है वह सच्चे अर्थ में,
यारी का हकदार
-किसलय

4 टिप्‍पणियां:

Amit Kumar Yadav ने कहा…

काफी संजीदगी से आप अपने ब्लॉग पर विचारों को रखते हैं.यहाँ पर आकर अच्छा लगा. कभी मेरे ब्लॉग पर भी आयें. ''युवा'' ब्लॉग युवाओं से जुड़े मुद्दों पर अभिव्यक्तियों को सार्थक रूप देने के लिए है. यह ब्लॉग सभी के लिए खुला है. यदि आप भी इस ब्लॉग पर अपनी युवा-अभिव्यक्तियों को प्रकाशित करना चाहते हैं, तो amitky86@rediffmail.com पर ई-मेल कर सकते हैं. आपकी अभिव्यक्तियाँ कविता, कहानी, लेख, लघुकथा, वैचारिकी, चित्र इत्यादि किसी भी रूप में हो सकती हैं......नव-वर्ष-२००९ की शुभकामनाओं सहित !!!!

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

यादव जी
नमस्कार
आपने मेरे ब्लॉग पर भ्रमण किया
आभार.
निश्चित रूप से
आप तक जरूर पहुंचूंगा
आपका
विजय

बेनामी ने कहा…

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बेनामी ने कहा…

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