क़र्ज़ माँ का है बड़ा, जानते ये हम सभी /
हैं बहुत उपकार इसके, हम न गिन सकते कभी //
कष्ट में देखे हमें तो, रोएँ इसके भी नयन /
सारे दिन की छोड़िए, रात न करती शयन //
आज भी सारे जहां का , एक ही मंतव्य है /
मातृ सेवा हर युगों का, श्रेष्ठतम कर्तव्य है //
ईशभक्ति में न शक्ति, माँ की सेवा में जो है /
स्वर्ग न आनंद देता, मातृ सेवा में वो है //
अपनी माँ को भूलता जो, वह बड़ा ख़ुदग़र्ज़ है /
मातृ सेवा इस जहां में , हर मनुज का फ़र्ज़ है //
- विजय तिवारी "किसलय"
जबलपुर, इंडिया
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