(सुनीता मिश्रा सुनीत)
प्रार्थना नारी की
मातःपिता के
मन में अंकुरित
इच्छाओं की मूर्ति बनूँ
प्रिय स्वजनों के
अरमानों की
पूर्ति बनूँ
-०-
शशि से मिले
निर्मल शीतलता
जो मेरी
पहचान बने
-०-
षट्ॠतु दें
मुझे वह मुस्कान
जिससे हों पुलकित
गिरि कानन
नीरोग निर्विकार
हो मेरा जीवनधन
-०-
नित उत्साह से भरें
मेरे पावन नयन
जिन्हें देखते ही
नेह से भर जायें
स्वजनों के मन
-०-
हो रवि सा
ज्योतिर्मय भाल
जिससे निखरे
कुल की लाली
-०-
हे प्रभू
मुझे आशीष दो
सद्गुणों, संस्कारों से
भरा रहे दामन
रहे न कभी खाली
-०-
-९४८, रामचरन विला
अंडरब्रिज के पास,
मदनमहल,जबलपुर
(प्रस्तुति विजय तिवारी ' किसलय ' )
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