सोमवार, 12 मई 2008

आप के दिल में खुशी के, रंग भरना चाहता हूँ.

आप के दिल में खुशी के, रंग भरना चाहता हूँ ॥
ज़िंदगी भर आपके मैं, संग रहना चाहता हूँ॥

आकाश में हम कर सकें, मस्ती भरी अठखेलियाँ ,
पंख बनकर आपके मैं, साथ उड़ना चाहता हूँ॥

निर्मल,अनूठे प्रेम का, रिश्ता बनाने के लिए ,
मैं प्रणय की पत्रिका के, पृष्ठ पढ़ना चाहता हूँ //

सारे ज़माने की खुशी जो, दे सके सौगात में ,
आपके जीवन का ऐसा, मीत बनना चाहता हूँ ॥

अंक तिरेसठ की तरह, नज़दीकियों के वास्ते ,
सामने अपनी नज़र के, रोज रखना चाहता हूँ /

अग्निपथ सी ज़िंदगी में, आएँगी कई अड़चनें ,
बाँटने दुख-दर्द सारे, साथ चलना चाहता हूँ /

रूप-गुण-बर्ताव-बोली, लगते भले सब आपके ,
इन सभी अच्छाइयों के , पास रहना चाहता हूँ /

"किसलय" हमारे बाग में , रौनक बढ़ने के लिए ,
तुम 'सुमन' सी खिल उठो मैं, गंध बनना चाहता हूँ /

-विजय तिवारी "किसलय"
जबलपुर, इंडिया

1 टिप्पणी:

समयचक्र ने कहा…

अग्निपथ सी ज़िंदगी में, आएँगी कई अड़चनें
बाँटने दुख-दर्द सारे, साथ चलना चाहता हूँ
बहुत बढ़िया आपकी कविता ने मन मोह लिया है बहुत सुंदर बधाई और कमेंट्स बाक्स ओपन करने के एक और बधाई