हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर
HINDI SAHITYA SANGAM JABALPUR, MP, INDIA
शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022
मोहल्ले, पड़ोस से दूरियाँ बनाते लोग
रविवार, 20 दिसंबर 2020
74 वर्ष से प्रगति का यह कैसा राग?
स्वतंत्रता के सही मायने तो स्वातंत्र्यवीरों की कुरबानी एवं उनकी जीवनी पढ़-सुनकर ही पता लगेंगे क्योंकि शाब्दिक अर्थ उसकी सार्थकता सिद्ध करने में असमर्थ है। देश को अंग्रेजों के अत्याचारों एवं चंगुल से छुड़ाने का जज्बा तात्कालिक जनमानस में जुनून की हद पार कर रहा था। यह वो समय था जब देश की आज़ादी के समक्ष देशभक्तों को आत्मबलिदान गौण प्रतीत होने लगे थे। वे भारत माँ की मुक्ति के लिए हँसते-हँसते शहीद होने तत्पर थे। ऐसे असंख्य वीर-सपूतों के जीवनमूल्यों का महान प्रतिदान है ये हमारी स्वतन्त्रता, जिसे उन्होंने हमें 'रामराज्य' की कल्पना के साथ सौंपा था। माना कि नवनिर्माण एवं प्रगति एक चुनौती से कम नहीं होती? हमें समय, अर्थ, प्रतिनिधित्व आदि सब कुछ मिला लेकिन हम संकीर्णता से ऊपर नहीं उठ सके। हम स्वार्थ, आपसी कलह, क्षेत्रीयता, जातीयता, अमीरी-गरीबी के मुद्दों को अपनी-अपनी तराजू में तौलकर बंदरबाँट करते रहे। देश की सुरक्षा, विदेशनीति और राष्ट्रीय विकास के मसलों पर कभी एकमत नहीं हो पाए।
आज केन्द्र और राज्य सरकारें अपनी दलगत नीतियों के अनुरूप ही विकास का राग अलापती रहती हैं। माना कि कुछ क्षेत्रों में विकास हो रहा है, लेकिन यहाँ भी महत्त्वपूर्ण यह है कि विकास किस दिशा में होना चाहिए? क्या एकांगी विकास देश और समाज को संतुलित रख सकेगा? क्या शहरी विकास पर ज्यादा ध्यान देना गाँव की गरीबी और भूख को समाप्त कर सकेगा? क्या मात्र देश की आतंरिक मजबूती देश की चतुर्दिक सीमाओं को सुरक्षित रख पाएगी? क्या हम अपने अधिकांश युवाओं का बौद्धिक व तकनीकि उपयोग अपने देश के लिए कर पा रहे हैं? हम तकनीकि, विज्ञान, चिकित्सा, अन्तरिक्ष आदि क्षेत्रों में आगे बढ़ें। बढ़ भी रहे हैं लेकिन क्या इसी अनुपात से अन्य क्षेत्रों में भी विकास हुआ है? क्या वास्तव में गरीबी का उन्मूलन हुआ है? क्या ग्रामीण शिक्षा का स्तर समयानुसार ऊपर उठा है? क्या ग्रामीणांचलों में कृषि के अतिरिक्त अन्य पूरक उद्योग, धंधे तथा नौकरी के सुलभ अवसर मिले हैं? क्या अमीरी और गरीबी के अंतर में स्पष्ट रूप से कमी आई है? क्या जातीय और क्षेत्रीयता की भावना से हम ऊपर उठ पाए हैं? यदि हम ऐसा नहीं देख पा रहे हैं तो इसका सीधा सा आशय यही है कि हम जिस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं वह स्वतंत्रता के बलिदानियों और देश के समग्र विकास के अनुरूप नहीं है।
आज राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी सोच एवं नीतियाँ बनाना अनिवार्य हो गया है, जो शहर-गाँव, अमीर-गरीब, जाति-पाँति, क्षेत्रीयता-साम्प्रदायिकता के दायरे से परे समान रूप से अमल में लाई जा सकें। आज पुरानी बातों का उद्धरण देकर बहलाना या दिग्भ्रमित करना उचित नहीं है। अब सरकारी तंत्र एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा असंगत पारंपरिक सोच बदलने का वक्त आ गया है। जब तक सोच नहीं बदलेगी, तब तक हम नहीं बदलेंगे और जब हम नहीं बदलेंगे तो राष्ट्र कैसे बदलेगा? आज देश को विश्व के अनुरूप बदलना नितांत आवश्यक हो गया है। देश में उन्नत कृषि हो, गाँव में छोटे-बड़े उद्योग हों, शिक्षा, चिकित्सा, सड़क-परिवहन और सुलभ संचार माध्यम ही ग्रामीण एवं शहर की खाई को पाट सकेंगे। आज भी लोग गाँवों को पिछड़ेपन का पर्याय मानते हैं। आज भी हमारे जीवन जीने का स्तर अनेक देशों की तुलना में पिछड़ा हुआ है। ऐसे अनेक देश हैं जो हमसे बाद में स्वतंत्र हुए हैं या उन्हें राष्ट्र निर्माण के लिए कम समय मिला है, फिर भी आज वे हम से कहीं बेहतर स्थिति में हैं, इसका कारण सबके सामने है कि वहाँ के जनप्रतिनिधियों द्वारा अपने देश और प्रजा के लिए निस्वार्थ भाव से योजनाबद्ध कार्य कराया गया है।
आज स्वतन्त्रता के 74 वर्षीय अंतराल में कितनी प्रगति किन क्षेत्रों में की गई यह हमारे सामने है। अब निश्चित रूप से हमें उन क्षेत्रों पर भी ध्यान देना होगा जो देश की सुरक्षा, प्रतिष्ठा और सर्वांगीण विकास हेतु अनिवार्य हैं। आज देश की जनता और जनप्रतिनिधियों की सकारात्मक सोच ही देश की एकता और अखंडता को मजबूती प्रदान कर सकती है। राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु कोई दबाव, कोई भूल या कोताही क्षम्य नहीं होना चाहिए। आज बेरोजगारी, अशिक्षा और भ्रष्टाचार जैसी महामारियों के उपचार तथा प्रतिकार हेतु सशक्त अभियान की महती आवश्यकता है। गहन चिंतन-मनन और प्रभावी तरीके से निपटने की जरूरत है। इस तरह आजादी के इतने बड़े अंतराल के बावजूद देश की अपेक्षानुरूप कम प्रगति के साथ ही सुदृढ़ता की कमी भी हमारी चिंता को बढाता है। आईये आज हम "सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा" को चरितार्थ करने हेतु संकल्पित हो आगे बढ़ें।
-विजय तिवारी 'किसलय'
जबलपुर
शनिवार, 3 अक्तूबर 2020
हमको ऐसा देश, चाहिये

शनिवार, 18 अप्रैल 2020
विसुधा सेवा समिति जबलपुर ( NGO ) द्वारा लगातार जरूरतमंदों को भोजन व खाद्यान्न वितरण
बुधवार, 4 दिसंबर 2019
मंगलवार, 30 जुलाई 2019
डायनामिक संवाद टी वी पर व्यंग्यम् की व्यंग्य गोष्ठी सम्पन्न।
आज संस्था "व्यंग्यम" से सम्बद्ध व्यंग्यकारों की व्यंग्य रचनाओं को डायनमिक संवाद टी वी ने चलचित्रांकन किया।
प्रख्यात सहित्यविद डॉ. राजकुमार सुमित्र जी की अध्यक्षता एवं डॉ. हर्ष कुमार तिवारी के संयोजकत्व
में व्यंग्यम् की गोष्ठी सम्पन्न हुई।
सर्वप्रथम यशोवर्धन पाठक ने व्यंग्य 'निरीक्षण सरकारी अस्पताल का' प्रस्तुत किया। इसके पश्चात विवेक रंजन श्रीवास्तव ने 'मातादीन के इंस्पेक्टर बनने की कहानी', राकेश सोहम ने वर्चुअल मानसून, एन. एल. पटेल ने आतंकवाद, प्रतुल श्रीवास्तव ने मुझे गिरफ्तार करवा दो, अभिमन्यु जैन ने ब्यूटीपार्लर, कुमार सोनी ने गुड़ और गुलगुला, गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त ने दूबरे और दो अषाढ़, ओ. पी. सैनी ने 'और स्तीफा दे दिया', रमेश सैनी ने हॉर्स ट्रेडिंग प्रायवेट लिमिटेड व्यंग्य प्रस्तुत किया।
अंत में व्यंग्य गोष्ठी के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात साहित्यकार डॉ. राजकुमार सुमित्र ने "अथ मुगालता कथा" व्यंग्य प्रस्तुत किया।
गोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार शरदचद्र उपाध्याय, विजय तिवारी "किसलय", मेहेर प्रकाश उपाध्याय, कृष्ण कुमार चौरसिया पथिक, गोपाल कृष्ण चौरसिया मधुर विशेष रूप से उपस्थित रहे।
रविवार, 6 जनवरी 2019
डॉ.विजय तिवारी की 'किसलय के काव्य सुमन " का समीक्षात्मक गीत
सोमवार, 19 नवंबर 2018
कोई नहीं पराया, मेरा घर संसार है
मेरा प्रिय गीत जिसे
बचपन से लेकर
अभी तक कभी भूला नहीं :-
कोई नहीं पराया, मेरा घर संसार है।
मैं न बँधा हूँ देश काल की,
जंग लगी जंजीर में
मैं न खड़ा हूँ जाति−पाँति की,
ऊँची−नीची भीड़ में
मेरा धर्म न कुछ स्याही,
−शब्दों का सिर्फ गुलाम है
मैं बस कहता हूँ कि प्यार है,
तो घट−घट में राम है
मुझ से तुम न कहो कि मंदिर,
−मस्जिद पर मैं सर टेक दूँ
मेरा तो आराध्य आदमी,
− देवालय हर द्वार है
कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है ।।
कहीं रहे कैसे भी मुझको,
प्यारा यह इन्सान है,
मुझको अपनी मानवता पर,
बहुत-बहुत अभिमान है,
अरे नहीं देवत्व मुझे तो,
भाता है मनुजत्व ही,
और छोड़कर प्यार नहीं,
स्वीकार सकल अमरत्व भी,
मुझे सुनाओ तुम न स्वर्ग
-सुख, की सुकुमार कहानियाँ,
मेरी धरती सौ-सौ स्वर्गों,
से ज्यादा सुकुमार है।
कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है ।।
मुझे मिली है प्यास विषमता,
का विष पीने के लिए,
मैं जन्मा हूँ नहीं स्वयँ-हित,
जग-हित जीने के लिए,
मुझे दी गई आग कि इस
तम में, मैं आग लगा सकूँ,
गीत मिले इसलिए कि घायल,
जग की पीड़ा गा सकूँ,
मेरे दर्दीले गीतों को,
मत पहनाओ हथकड़ी,
मेरा दर्द नहीं मेरा है,
सबका हाहाकार है ।
कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है ।।
मैं सिखलाता हूँ कि जिओ औ',
जीने दो संसार को,
जितना ज्यादा बाँट सको तुम,
बाँटो अपने प्यार को,
हँसो इस तरह, हँसे तुम्हारे,
साथ दलित यह धूल भी,
चलो इस तरह कुचल न जाये,
पग से कोई शूल भी,
सुख न तुम्हारा सुख केवल,
जग का भी उसमें भाग है,
फूल डाल का पीछे, पहले,
उपवन का श्रृंगार है।
कोई नहीं पराया मेरा, घर सारा संसार है ।।
-विजय तिवारी "किसलय"