शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

वे समय के साथ बँधना नहीं चाहते इसीलिए घड़ी नहीं पहनते : चित्रकार कामता सागर के अमृत महोत्सव पर विशेष.



सागर जैसी व्यापकता और कला की सूक्ष्म दृष्टि जब सृजन हेतु क्रियाशील होती है तब अन्तस का विचार मंच कैनवास पर एक सजीव संसार को जन्म देता है। लगन परिश्रम और निर्विकार भाव से गढ़ा गया कल्पना और यथार्थ का मिश्रण अतुल्य एवं अविस्मरणीय सुखद अनुभूति देता है। प्रत्येक इंसान कला का प्रसंशक होता है, परंतु कलाकार मुश्किल से पैदा होते हैं। उनके अंदर की विलक्षण कल्पना-शक्ति, दृश्य-अदृश्य, जीव-निर्जीव, धरती-आकाश अथवा वर्षा-गरमी-ठण्ड को कैनवास पर प्रतिबिंबित ही नहीं करती, उसे प्रांजल स्वरूप भी प्रदान करती है। कलाकार ईश्वरीय उपहार हैं तो कला के प्रति समर्पण उनकी महानता है। कला और शिक्षा कभी पूर्ण नहीं होती। कलाकार का स्थिर होना अधूरेपन का द्योतक है। निरंतरता और नियमित अभ्यास उत्कर्ष के नये शिखर खड़े करते हैं। जीवन में संतुष्टि के लिये निरंतरता उतनी ही आवश्यक है, जितना स्वास्थ्य के लिए व्यायाम आवश्यक होता है। एक तरह से जीवन में ठहराव हारने जैसा होता है और निरंतरता को विजय का प्रतीक मानना चाहिए।


(श्री कामता सागर जी)
आज साठोत्तरी समाज में ऐसे लोगों का प्रतिशत अत्यल्प है जो आज भी अपनी सक्रयिता और अपनी जीवनशैली से सबको आकृष्ट करते हैं। इनकी संख्या भले ही कम है लेकिन ये वर्तमान पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक होने के साथ-साथ हमारे लिए एक मिसाल की तरह हैं। इन्होंने जीवनभर अपनी कला को निखारा है, बाँटा है। उदारमना बनकर अपनी विधा अगली पीढ़ी को सौंपी है। वर्तमान पीढ़ी का दायित्व है कि वह ऐसे बुजुर्गों का सम्मान करे, उनके अधूरे कार्यों को पूरा करे। मेरा तो मानना है कि हम उनकी तृप्ति हेतु उनके कार्यों में सहभागी बनें। कहीं ऐसा न हो कि उनकी उपलब्धियाँ एवं हुनर उन्हीं के साथ चली जाएँ। हर इन्सान अमर होना चाहता है और हम सब जानते हैं कि वही इन्सान अमरत्व पाता है, जो समाज को अमूल्य या अनोखा उपहार देकर जाता है। क्या हम ऐसे लोगों से लाभान्वित होना चाहते हैं? शायद हाँ और नहीं भी। जब तक समाज है और समाज में इन्सान हैं तब तक ये ऊहापोह की स्थिति बनी रहेगी, लेकिन आप, हम और हमारे जैसे लोग ही इस दिशा में आगे बढ़ेंगे तो ये साठोत्तरी समाज के लिए आदरभाव एवं कृतज्ञता कहलाएगी।
हम संस्कारधानी में रहते हैं, इसका हमें गर्व हैं लेकिन संस्कारी पथ पर चलना उससे भी बड़ी बात है। इस बड़ी बात के लिए आज भी ऐसे लोग हैं, जो कभी पीछे नहीं हटे। आज भी ऐसी संस्थाएँ एवं संगठन हैं, जो निरंतर इस हेतु समर्पित हैं। जब बात आती है समग्र जीवन ‘‘कला साधना‘‘ में आहूत करने वाले व्यक्तित्व की। जब बात आती है चित्रकला में राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त करने वाले की अथवा जब बात आती है पूर्ण कर्तव्य निष्ठा से अपनी कला को दान में देकर शिष्यों को कलापथ पर अग्रसर करने वाले की, तब संस्कारधानी का ये विशेष वर्ग भला पीछे क्यों रहता?
बात है 10-10-10-10-10 की । अर्थात 10 अक्टूबर सन् 10 के 10 बजकर 10 मिनट की. आशय है संस्कारधानी में पुष्पित-पल्लवित कलासाधक, हम सबके मा‘साब कामता सागर के अमृत महोत्सव की । आदरणीय मा‘साब को हमारी शुभ-कामनाएँ। हम उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से पूर्व परिचित हैं परन्तु इस खुशियों भरे अविस्मरणीय अवसर पर उनका संक्षिप्त जीवन परिचय देना आवश्यक समझते हैं:-

वरिष्ठ कलासाधक, साहित्य अनुरागी आदरणीय श्री कामता सागर जी का जन्म मध्य प्रदेश के सागर जिले में 10 अक्टूबर 1933 को हुआ। पिता श्री गंगासागर जी सहित पूरा परिवार गीता-मानस प्रेमी था। उनके घर का परिवेश साहित्य, संगीत एवं कला की त्रिवेणी था। इस तरह श्री कामता सागर जी को संस्कार, साहित्य, संगीत एवं कला की शिक्षा घर पर स्वमेव प्राप्त हुई । बुन्देली भाषा के चहेते श्री कामता सागर जी हिन्दी, अँग्रेजी एवं चित्रकला में निष्णात हैं। खेलकूद, छायांकन एवं संगीत में दखल रखने वाले मा‘साब सन् 1976 से मध्य प्रदेश आर्टिस्ट फोरम के अध्यक्ष पद पर रहते हुए आज भी सक्रिय हैं। सन् 1953 से सन् 1993 तक माडल हाई स्कूल जबलपुर में आप एक कला शिक्षक के रूप में पदस्थ रहे। आपने सन् 1960 के पूर्व सर जे. जे. स्कूल आफ आर्ट , मुंबई में चित्रकला की शिक्षा ग्रहण की एवं छ: वर्ष तक मुंबई के प्रसिद्ध पृथ्वी थियेटर में अभिनय तथा कला की बारीकियाँ सीखते हुए ख्याति अर्जित की। यहाँ मंचित नाटकों में आपके अभिनय को स्व. पृथ्वी राजकपूर की भी सराहना प्राप्त हुई । आज भी संस्कारधानी की विविध साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं कला संस्थाएँ इनके अनुभव एवं ज्ञान से लाभान्वित होती रहती हैं। नयी एवं पुरानी पीढ़ी के मध्य एक सेतु के रूप में आपकी भूमिका सदैव स्मरणीय रहेगी। सफेद-कुर्ता-पायजामा एवं कंधे पर लटका थैला उनकी पहचान बन गए हैं। इनकी डायरी में संदेश, सूक्तियाँ, अनुभव एवं जीवनोपयोगी महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख मिलता है। जबलपुर विश्वविद्यालय सहित प्रान्तीय शिक्षण महाविद्यालय, उच्चतर माध्यमिक विद्यालय एवं अनेक संस्थाओं के मोनोग्राम बनाने का श्रेय कामता मा‘साब को ही जाता है। भारत शासन द्वारा जारी गांधी जी के चित्र का एक रुपये वाला डाक टिकट आपका ही डिज़ाइन किया हुआ है। तीन मूर्ति भवन नई दिल्ली में जाकर बनाया गया स्वर्गीय इंदिरा गांधी का चित्र आज भी वहाँ देखा जा सकता है। आपके द्वारा स्क्रेच किया गया चित्र ‘‘नन्दिनी‘‘ धर्मयुग सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं में चर्चित हुआ। ‘‘अनंता के दो बिन्दु‘‘ भी चर्चित चित्र प्रान्तीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर में देखा जा सकता है। आदरणीय कामता सागर द्वारा लिखे गये शताधिक चिंतन आलेख आकाशवाणी से प्रसारित हो चुके हैं, इसे भी एक उपलब्धि माना जा सकता है। आपकी एक और विशेषता है कि 77 वर्ष की आयु में भी ये रूढ़िवादी नहीं है। विकास और परिवर्तन के साथ वे भी बदलाव में विश्वास रखते हैं। वे समय के साथ बँधना नहीं चाहते इसीलिए घड़ी नहीं पहनते। नई तकनीकी, नई वैज्ञानिक खोजों एवं इलेक्ट्रानिक युग की जानकारी इनको समय के साथ चलने में सहायक सिद्ध होती है। स्नेही-स्वजनों पर दृष्टि पड़ते ही चेहरे पर आत्मीय मुस्कुराहट बिखेरने वाले एवं अपनी स्नेहिल वाणी से अपनत्व परोसने वाले आदरणीय श्री कामता सागर को उनके अमृत महोत्सव पर हमारी अशेष शुभ-कामनाएँ एवं जीवेत् शरद: शतम् के भाव।

श्री कामता सागर जी की निम्न रचना पाठकों हेतु प्रस्तुत है :-

बाँसुरी नहीं बजती, आदमी बजता है
कितनी सुरीली थी
फेरी वाले ने खुद
बजा कर सुनाई थी।
तब खरीद लाये थे
घंटों से उलझे हो
पसीने-पसीने हो
अँगुलियाँ हथौड़े सी
चलती हैं।
किंतु निकल नहीं पाते
वैसे मीठे स्वर।
तो रख दो, छोड़ दो,
ओर पोंछ डालो
पसीने को
बाँसुरी नहीं बजती
आदमी बजता है।
=000=
-आलेख-
- विजय तिवारी ‘किसलय’

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आदरणीय श्री कामता सागर को उनके अमृत महोत्सव पर शुभकामनाएँ एवं बधाई...

अच्छा लगा रचना पढ़कर एवं परिचय प्राप्त कर.

समय चक्र ने कहा…

आदरणीय कामतासागर जी का परिचय जानकर बहुत बढ़िया लगा .... कामतासागर जी मेरे पापा स्वर्गीय पंडित बद्री प्रसाद जी मिश्र के अच्छे मित्र रहे हैं और उनका मेरे निवास स्थान पर काफी आना जाना रहा है ... अमृत महोत्सव पर अनेकों बधाई और शुभकामनाये .... आदरणीय दीघार्यु हों की कामना के साथ...

महेंद्र मिश्र
जबलपुर.

Gautam RK ने कहा…

Shubhkaamnaon ke sath Dheron badhai!



Rgds

Ramkrishna Gautam