बुधवार, 25 अगस्त 2010

दोहा श्रृंखला (दोहा क्रमांक - ८७)

 झुकते पूजाघरों में,

जिनके निश्छल माथ.

लिप्त दिखे अक्सर वही,

झूठ-कपट के साथ..








- विजय तिवारी " किसलय "

2 टिप्‍पणियां:

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

झुकते पूजाघरों में, जिनके निश्छल माथ.
लिप्त दिखे अक्सर वही, झूठ-कपट के साथ..

काफी रात गए आपने टिपण्णी की और अपना ये अद्भुत दोहा भी डाला .....
दो पंक्तियाँ भी कभी जीवन की गहरी सच्चाई पेश करने के लिए काफी होती हैं ....
आपका ये दोहा यही चरितार्थ करता है ......वाह .....!!

समयचक्र ने कहा…

बहुत सटीक पंक्तियाँ .... आज ऐसा ही देखने मिल रहा है... बढ़िया दोहा...बधाई विजय जी...