इन्सान का इन्द्रियों के वश में होना स्वाभाविक प्रक्रिया है । इन्द्रियों का आवेग प्रायः अनैतिक, अधार्मिक एवं असामाजिक गतिविधियों की ओर प्रेरित करता है । वहीं दूसरी ओर इन्द्रियाँ इच्छा शक्ति के समक्ष झुकती भी है । ऐसे अनेक प्रमाण हमारे वेद पुराणों में उपलब्ध हैं । यदि ऐसा नहीं होता तो समाज में नैतिकता और अनैतिकता का बेमेल मिश्रण बन जाता । हमारे अंदर का ज्ञान और हमारे अंदर की कर्त्तव्यपरायणता सदैव इन्द्रिय आवेग बढ़ने का विरोध करती है । हमें लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है । बुद्धि और विवेक के प्रयोग से लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। मन यदि भटकता है तो उसे उचित दिशा की ओर ले जाया जा सकता है । ऐसा करने पर हम जहाँ अपने अंदर की बुराईयों का अंत कर पाने में अपने आप को समर्थ पाते हैं, वहीं ईर्ष्या, घृणा, क्रोध, अत्याचार से भी बचा जा सकता है । हम विनम्रता, प्रेम, सहयोग, परमार्थ और अपनत्व जैसे गुणों से बुराईयों पर विजय प्राप्त कर नैतिक मूल्यों की विचारधारा के ध्वजवाहक भी बन सकते हैं ।
हमें आज अपनी उन कमजोरियों के प्रति चिन्तन करने की आवश्यकता महसूस होने लगी है जो हमारे राष्ट्र और हमारी निजी जिन्दगी को भी प्रभावित कर रही है। आज हम अपनी कमजोरियों पर नहीं, दूसरों की सफलताओं पर चिन्तित होते है । आज हम अपनी कमजोरियों को दूर करने के स्थान पर दूसरों के अवगुण और दोष ढूँढते में अपना कीमती वक्त बरबाद करते हैं। छोटे छोटे स्वार्थ के वशीभूत होकर हम ईश्वर प्रदत्त इस प्रेम की नियामत को जहरीला बनाने में भी गुरेज॒ नहीं करते। प्रेम तो दूसरों की उपलब्धियों और सद्गुणों पर न्यौछावर होने को आतुर रहता है। उन्हें मान और सम्मान देता है । प्रेम कभी किसी का निरादर या उपेक्षा नहीं करता। प्रेम सम्पूर्ण जगत में जन्मजात पाया जाने वाला गुण है। जब जीवजन्तु तक इस प्रेम को जानते पहचानते और एहसास करते हैं तब विवेकशील कहे जाने वाले इन्सान को तो और अधिक सम्वेदनशीलता का परिचय देते हुये प्रेम पथ पर अग्रसर होना चाहिये । हमारे इर्द गिर्द पनपने वाली हर छोटी छोटी बुराईयाँ जो बाद में विकराल रूप धारण कर सकती हैं, उन्हें अपने प्रेम रूपी अस्त्र से समाप्त करते रहना चाहिये । शायद यही आज के भावना शून्य और तनाव भरे जीवन की महती आवश्यकता भी है ।
-विजय तिवारी " किसलय "
हमें आज अपनी उन कमजोरियों के प्रति चिन्तन करने की आवश्यकता महसूस होने लगी है जो हमारे राष्ट्र और हमारी निजी जिन्दगी को भी प्रभावित कर रही है। आज हम अपनी कमजोरियों पर नहीं, दूसरों की सफलताओं पर चिन्तित होते है । आज हम अपनी कमजोरियों को दूर करने के स्थान पर दूसरों के अवगुण और दोष ढूँढते में अपना कीमती वक्त बरबाद करते हैं। छोटे छोटे स्वार्थ के वशीभूत होकर हम ईश्वर प्रदत्त इस प्रेम की नियामत को जहरीला बनाने में भी गुरेज॒ नहीं करते। प्रेम तो दूसरों की उपलब्धियों और सद्गुणों पर न्यौछावर होने को आतुर रहता है। उन्हें मान और सम्मान देता है । प्रेम कभी किसी का निरादर या उपेक्षा नहीं करता। प्रेम सम्पूर्ण जगत में जन्मजात पाया जाने वाला गुण है। जब जीवजन्तु तक इस प्रेम को जानते पहचानते और एहसास करते हैं तब विवेकशील कहे जाने वाले इन्सान को तो और अधिक सम्वेदनशीलता का परिचय देते हुये प्रेम पथ पर अग्रसर होना चाहिये । हमारे इर्द गिर्द पनपने वाली हर छोटी छोटी बुराईयाँ जो बाद में विकराल रूप धारण कर सकती हैं, उन्हें अपने प्रेम रूपी अस्त्र से समाप्त करते रहना चाहिये । शायद यही आज के भावना शून्य और तनाव भरे जीवन की महती आवश्यकता भी है ।
-विजय तिवारी " किसलय "
13 टिप्पणियां:
"इन्सान को तो और अधिक सम्वेदनशीलता का परिचय देते हुये प्रेम पथ पर अग्रसर होना चाहिये"
शतप्रतिशत सहमत हूँ . जिसकी इन्द्रियां वश में नहीं होती है वह भटक जाता है चाहे वह इंसान हो या भगवान .
विजय जी
आप बहुत अच्छा लिख रहे है कृपया नियमित लेखन करें शुभकामनाओ के साथ .
महेन्द्र मिश्र
जबलपुर.
बहुत सार्थक चिन्तन!! विचारणीय..
बहुत आभार सदविचारों को हमारे साथ साझा करने के लिए, विजय भाई.
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!
बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई
prem kabhi kisi ka niradar ya upeksha nahin karta,bahut achha aur ji haan prem ke astra se hi kai buraiyon ko door kiya ja sakta hai main sat pratishat sahmat hoon . achha lekh likha aapne , padhne me man laga .
prem se hum sab ko apna bana sakte hain.......vani ki madhurta se paraye aur dushman bhi apne ho jate hain.........har burayi ko door kiya ja sakta hai prem aur sadbhav se.
aapne bahut hi sarthak lekh likha hai ........badhayi.
सबसे पहले तो आपको शुक्रिया आप मेरी गुल्लक में आए। उसमें झांककर देखा। कुछ सिक्के टटोले उनकी खनक भी महसूस की। आते रहिएगा। अच्छा लगा।
प्रेम पर आपकी यह टिप्पणी प्रासंगिक है। सही बात है कि हम अपनी कमजोरियों को दूर करने की बजाय दूसरों की सफलता पर ही बात करते रहते हैं। प्रेम तो शाश्वत है। उसके बिना क्या है।
भाई जी ,अभिवादन!
प्रेम की सार्थकता तो सर्व विदित है,कभी कभी एक भ्रम प्रेम का रूप रखकर छलता है,ऐसे समय में विवेक का होना आवश्यक होता है.भौतिकता की चमक में आतंरिक स्पंदन शिथिल होता जा रहा है,हम शीघ्र ही बहुत कुछ पा लेना चाहते हैं,जिसके लिए नैतिकता की उपेक्षा करते रहते हैं .निजी स्वार्थ प्रेम का अर्थ ही बदले दे रहे हैं ,ऐसे में आपका लोगों को जागरूक करना अच्छा लगा .
मेरी शुभकामनायें ..........
सार्थक चिंतन है.................इन्द्रियों को वश में करना भी एक सतत प्रक्रिया है.........अब्य्हास करने से आ हि जाती है
आज हम अपनी कमजोरियों पर नहीं, दूसरों की सफलताओं पर चिन्तित होते है
Bilkul sahi kaha hai aapne ...yahi ek avgun yadi har koi sudhar le to smaj ka roop hi kuch or ho...
Prabhavshali Abhivyakti Vijay ji!
Absolutely right! Indriyon par lagaam kasna param aavashyak hain
Nice blog
pl visit my blog
sadar
साईं राम
सचाई है जी
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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