रविवार, 12 अप्रैल 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र ५०]



सहमे सारी वनस्पती,जीव जगत बेहाल//तेज धूप में हवा के,लगें थपेड़े गाल

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5 टिप्‍पणियां:

अनुपम अग्रवाल ने कहा…

तेज़ धूप को झेलते, जगत से क्योँ होते बेहाल
सहम सहम कर हो गये, लाल लाल ये गाल

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

लाल लाल ये गाल, दोहा नजर ना आया
यही सोच कर मेरा मन खुद पर मुस्काया

vandana gupta ने कहा…

aapka doha to anupam ji ne poora kar diya .
aisa bhi likhna chahiye jise aage koi aur poora kare.

समयचक्र ने कहा…

बहुत ही बढ़िया दोहा. आभार

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

सूर्य बिना कुछ सम्‍भव नही है, जब होता है तब भी सभी इसे याद करते है और जब नही होता है तब परभी सभी इसे याद करते है। अच्‍छा लगा आपका दोहा।

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