शुक्रवार, 2 जनवरी 2009

दोहा श्रृंखला [दोहा क्र. १५]

ज्यों जल कर दे रोशनी,
जग उपकारी दीप.
त्यों मर 'मोती' कवच में,

पैदा करती सीप..

- किसलय

9 टिप्‍पणियां:

BrijmohanShrivastava ने कहा…

स्वम जल कर दूसरों रोशनी देना और सीप द्वारा मोती पैदा करने की तुलना सुंदर

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

बहुत ही सुंदर . आभार

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

ब्रिज मोहन जी
नमस्कार
आपकी प्रसंशा के लिए आभार
आपका
- विजय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

महेंद्र भाई
सादर अभिवंदन
आप तो मेरे निकट हैं ही और आप
मेरे पोस्ट पढ़कर मेरा
उत्साहवर्धन भी करते हैं
आभार
- विजय

बेनामी ने कहा…

bahut sundar panktiyaan hain.. nav varsh par meri shubhkaamnaye yu hi likhte rahiye..

namita ने कहा…

दीप और सीप अच्छा लगा दोनो का साथ होना

कुछ में बहुत कुछ कह दिया आपने

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

आदरणीया वर्षा जी
अभिवंदन
देर से ही सही,
मेरी भी नव वर्ष पर हार्दिक मंगल भावनाएँ स्वीकारें.
बस आप जैसे निश्छल साहित्यकारों की दुआएं साथ रहीं तो मैं लेखन क्षेत्र में जरूर ऐसा लिखने का प्रया करूंगा कि आप निराश नहीं होंगी.
आपका
-विजय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

आदरणीया नमिता जी
अभिवंदन
आपको मेरा लेखन पसंद आया,
मुझे इससे ज्यादा और क्या चाहिए ,
शायद यही साहित्यकार कि उपलब्धि भी होती है

आपका
-विजय

बेनामी ने कहा…

Although from different places, but this perception is consistent, which is relatively rare point!