शनिवार, 12 जनवरी 2008

बस यूँ ही जाएँ गुजर मंजिलें-दर-मंजिलें

बस यूँ ही जाएँ गुजर, मंजिलें-दर-मंजिलें



गम की अँधेरी रात में

दीप खुशियों के जलें

दिल के उजड़े बाग़ में

प्यार की कलियाँ खिलें
जिन्दगी की राह में

हमसफ़र कोई मिले,

बस यूँ ही जाएँ गुजर

मंजिलें-दर-मंजिलें......


- डॉ विजय तिवारी 'किसलय'

2 टिप्‍पणियां:

श्रद्धा जैन ने कहा…

aapki gazal padhi aur girish ji ke dawara aapko jana

aapko agar samay mile to yaha zarur padhare aap jaisa kavi hamare beech ho ye samaan ki baat hai

www.shayarfamily.com

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

thanks shraddhaji.
ham sadaiv sahityakaron ke saath hi hain.
hamare prati sahridayata ke liye dhanyawaad.

- kislay ,